प्राणायाम की दो प्राचीन विधियाँ ---
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प्राणायाम एक आध्यात्मिक साधना है जो हमारी चेतना को परमात्मा से जोड़ता है। यह कोई श्वास-प्रश्वास का व्यायाम नहीं है, यह योग-साधना का भाग है जो हमारी प्राण चेतना को जागृत कर उसे नीचे के चक्रों से ऊपर उठाता है। मैं यहाँ प्राणायाम की दो अति प्राचीन और विशेष विधियों का उल्लेख कर रहा हूँ। ये निरापद हैं। ध्यान साधना से पूर्व खाली पेट इन्हें करना चाहिए। इनसे ध्यान में गहराई आयेगी।
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(१) (a) खुली हवा में पवित्र वातावरण में पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह कर के कम्बल पर बैठ जाइए। यदि भूमि पर नहीं बैठ सकते तो भूमि पर कम्बल बिछाकर, उस पर बिना हत्थे की कुर्सी पर कमर सीधी कर के बैठ जाइए। कमर सीधी रहनी चाहिए अन्यथा कोई लाभ नहीं होगा। कमर सीधी रखने में कठिनाई हो तो नितंबों के नीचे पतली गद्दी रख लीजिये। दृष्टी भ्रूमध्य को निरंतर भेदती रहे, और ठुड्डी भूमि के समानांतर रहे।
(b) अब तीनों बंध (मूलबंध, उड्डियानबंध और जलंधरबंध) लगायें; जिनकी विधि इस प्रकार है -- बिना किसी तनाब के फेफड़ों की पूरी वायू नाक द्वारा बाहर निकाल दीजिये, गुदा का संकुचन कीजिये, पेट को अन्दर की ओर खींचिए और ठुड्डी को नीचे की ओर कंठमूल तक झुका लीजिये। दृष्टी भ्रूमध्य में ही रहे।
(c) मेरु दंड में नाभी के पीछे के भाग मणिपुर चक्र पर मानसिक रूप से ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ का जितनी देर तक बिना तनाव के जप कर सकें कीजिये। इस जप के समय हम मणिपुर चक्र पर प्रहार कर रहे हैं।
(d) आवश्यक होते ही सांस लीजिये। सांस लेते समय शरीर को तनावमुक्त कर a वाली स्थिति में आइये और कुछ देर अन्दर सांस रोक कर नाभि पर ओंकार का जप करें। जप के समय हम नाभि पर ओंकार से प्रहार कर रहे हैं।
(e) उपरोक्त क्रिया को दस बारह बार दिन में दो समय कीजिये| इस के बाद ध्यान कीजिये।
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(2)
एक दूसरी विधि है :------ उपरोक्त प्रक्रिया में a और b के बाद धीरे धीरे नाक से सांस लेते हुए निम्न मन्त्रों को सभी चक्रों पर क्रमश: मानसिक रूप से एक एक बार जपते हुए ऊपर जाएँ|
मूलाधारचक्र ........ ॐ भू:,
स्वाधिष्ठानचक्र ..... ॐ भुव:,
मणिपुरचक्र ......... ॐ स्व:,
अनाहतचक्र ........ ॐ मह:,
विशुद्धिचक्र ......... ॐ जन:,
आज्ञाचक्र ............. ॐ तप:,
सहस्त्रार................ ॐ सत्यम् |
(इसके पश्चात जिन का उपनयन संस्कार हो चुका है, वे गायत्री मंत्र का जप भी कर सकते हैं। उनके लिए तीन मंत्र और भी हैं).
इसके बाद सांस स्वाभाविक रूप से चलने दें लेते हुए अपनी चेतना को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विस्तृत कर दीजिये| ईश्वर की सर्वव्यापकता आप स्वयं हैं| आप यह देह नहीं हैं| जैसे ईश्वर सर्वव्यापक है वैसे ही आप भी सर्वव्यापक हैं| पूरे समय तनावमुक्त रहिये| कई अनुष्ठानों में प्राणायाम करना पड़ता है वहां यह प्राणायाम कीजिये| संध्या और ध्यान से पूर्व भी यह प्राणायाम कर सकते हैं| धन्यवाद|
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२७ अप्रेल २०२१
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