Sunday 31 July 2016

सब से बड़ी उपलब्धी, सब से बड़ी सेवा और सब से बड़ा कर्त्तव्य ....

सब से बड़ी उपलब्धी, सब से बड़ी सेवा और सब से बड़ा कर्त्तव्य .... परमात्मा की प्राप्ति है, जिसे हम आत्म-साक्षात्कार या परमात्मा को उपलब्ध होना भी कह सकते हैं| इस हेतु किया जाने वाला साधन सबसे बड़ा कर्तव्य व दायित्व है|
इस हेतु मार्गदर्शन कोई ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य ही कर सकता है जिसने परमात्मा को पा लिया हो|
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एक बार वह साधन मिल जाए तो अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ता से लग जाना चाहिए| कोई समझौता नहीं, कोई भय नहीं, व कोई तथाकथित लोकलाज या अन्य किसी छोटे मोटे दायित्व की परवाह नहीं करनी चाहिए| सफलता उसी को मिलती है जो जान हथेली पर लेकर चलता है|
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इस बारे में मैंने जो कुछ भी सीखा है वह अपनी विफलताओं और अनुभवों से सीखा है| मैं नहीं चाहता कि जो विफलताएँ मुझे मिलीं वे औरों को भी मिलें|
सबसे पहले परमात्मा से अहैतुकी परम प्रेम सत्संग द्वारा विकसित करना और फिर गुरु-प्रदत्त साधना में जी-जान से जुट जाना चाहिए|
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सभी का कल्याण हो| ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||