सब से बड़ी उपलब्धी, सब से बड़ी सेवा और सब से बड़ा कर्त्तव्य .... परमात्मा
की प्राप्ति है, जिसे हम आत्म-साक्षात्कार या परमात्मा को उपलब्ध होना भी
कह सकते हैं| इस हेतु किया जाने वाला साधन सबसे बड़ा कर्तव्य व दायित्व है|
इस हेतु मार्गदर्शन कोई ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य ही कर सकता है जिसने परमात्मा को पा लिया हो|
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एक बार वह साधन मिल जाए तो अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ता से लग जाना चाहिए| कोई समझौता नहीं, कोई भय नहीं, व कोई तथाकथित लोकलाज या अन्य किसी छोटे मोटे दायित्व की परवाह नहीं करनी चाहिए| सफलता उसी को मिलती है जो जान हथेली पर लेकर चलता है|
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इस बारे में मैंने जो कुछ भी सीखा है वह अपनी विफलताओं और अनुभवों से सीखा है| मैं नहीं चाहता कि जो विफलताएँ मुझे मिलीं वे औरों को भी मिलें|
सबसे पहले परमात्मा से अहैतुकी परम प्रेम सत्संग द्वारा विकसित करना और फिर गुरु-प्रदत्त साधना में जी-जान से जुट जाना चाहिए|
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सभी का कल्याण हो| ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
इस हेतु मार्गदर्शन कोई ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य ही कर सकता है जिसने परमात्मा को पा लिया हो|
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एक बार वह साधन मिल जाए तो अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ता से लग जाना चाहिए| कोई समझौता नहीं, कोई भय नहीं, व कोई तथाकथित लोकलाज या अन्य किसी छोटे मोटे दायित्व की परवाह नहीं करनी चाहिए| सफलता उसी को मिलती है जो जान हथेली पर लेकर चलता है|
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इस बारे में मैंने जो कुछ भी सीखा है वह अपनी विफलताओं और अनुभवों से सीखा है| मैं नहीं चाहता कि जो विफलताएँ मुझे मिलीं वे औरों को भी मिलें|
सबसे पहले परमात्मा से अहैतुकी परम प्रेम सत्संग द्वारा विकसित करना और फिर गुरु-प्रदत्त साधना में जी-जान से जुट जाना चाहिए|
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सभी का कल्याण हो| ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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