Wednesday 18 October 2017

क्या दोष सिर्फ उत्तरी कोरिया का ही है ?

क्या दोष सिर्फ उत्तरी कोरिया का ही है ?
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हम लोग उत्तरी कोरिया के तानाशाह शासक किम जोंग उन को कितना भी बुरा बताएँ पर जापान और अमेरिका ने वहाँ जो पाप किये हैं, वे अक्षम्य हैं| मुझे सन १९८० में बीस दिनों के लिए उत्तरी कोरिया जाने का अवसर मिला था| उन दिनों रूसी भाषा का अच्छा ज्ञान होने के कारण वहाँ किसी भी तरह की भाषा की समस्या नहीं आई| वहाँ के सभी अधिकारी रूसी भाषा समझते और बोलते थे| वहाँ काफी रूसी काम करते थे जिनका व्यवहार बड़ा मित्रवत था| कुछ हमारे मित्र भी बन गये थे| जब मैं वहाँ था उसी समय कोरियाई युद्ध की तीसवीं वर्षगाँठ भी मनाई गयी थी| भारत में उन दिनों संजय गाँधी की एक दुर्घटना में मरने की खबर भी मुझे वहाँ रूसियों से ही मिली थी| संयोगवश वहाँ की सेना के एक-दो वरिष्ठ अधिकारियों से भी काफी बातचीत हुई थी जिनसे वहाँ के जीवन के बारे में काफी कुछ जानने को मिला| वहाँ का सरकारी प्रचार साहित्य भी काफी पढ़ा| सबसे अधिक जानकारी तो अपनी जिज्ञासुवृति और अध्ययन से मिली|
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वहाँ की स्थिति को समझने के लिए हमें सन १९०० ई.के बाद से द्वितीय विश्वयुद्ध, और उसके बाद के दस वर्षों के इतिहास को जानना होगा| यहाँ मैं कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक जानकारी देने का प्रयास करूँगा|
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विगत में रूस ने धीरे धीरे अपनी सीमाओं का विस्तार एशिया के विशाल निर्जन उत्तरी भाग (साइबेरिया), एशिया के सुदूर पूर्व भाग, जापान सागर में सखालिन द्वीप, उत्तरी प्रशांत में अल्युशियन द्वीप समूह से होते हुए उत्तरी अमेरिका में अलास्का तक कर लिया था| उत्तरी-पूर्वी एशिया में मंचूरिया भी रूस के आधीन था जहाँ के पोर्ट आर्थर में रूसी पूर्वी सेना का मुख्यालय था| एक रूसी जनरल उस क्षेत्र का प्रशासक हुआ करता था|
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रूस ने धीरे धीरे पूरे कोरिया पर अपना अधिकार करने का प्रयास किया जिसमें वह लगभग सफल भी हो गया था, पर जापान इस से तिलमिला उठा क्योंकि जापान का विश्व के अन्य भागों से संपर्क कोरिया के माध्यम से ही था| जापान से रहा नहीं गया और जापान ने सन १९०५ में कोरिया में अपनी सेनाएँ उतार कर रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी|
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जापानी सेना ने रूसी सेना को पराजित करते हुए पूरे कोरिया पर तो अधिकार कर ही लिया, पोर्ट आर्थर और पूरा मंचूरिया भी छीन लिया| त्शुशीमा जलडमरूमध्य के पास में हुए एक समुद्री युद्ध में जापान की नौसेना ने रूस की पूरी नौसेना को डुबो दिया जिसमें हज़ारों रूसी नौसैनिक मारे गए| यह रूस की अत्यधिक शर्मनाक पराजय थी| (इसी युद्ध में रूस की पराजय के कारण बोल्शेविक क्रांति की नींव पड़ी, और भारत में क्रांतिकारियों को अंग्रेजों का विरोध करने की प्रेरणा मिली)
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कोरिया पर जापान का ३५ वर्षीय शासन (१९१०-१९४५) कोरिया के लिए एक भयावह त्रासदी था| जापानी सैनिक अत्यधिक क्रूर थे, उन्होंने वहाँ बहुत अधिक अमानवीय अत्याचार किये जिसे कोरिया का जनमानस अभी तक नहीं भुला पाया है| जापान ने कोरिया पर सेना की निर्मम शक्ति से राज्य किया, किसी भी असहमति और विद्रोह को निर्दयता से कुचल दिया| सबसे बुरा काम तो यह किया की वहाँ की हज़ारों महिलाओं को जापानी सैनिकों की यौन दासियाँ (Sex slave) और गुलाम बनने को बाध्य किया|
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द्वितीय विश्व युद्ध में जापान में हिरोशिमा पर ६ अगस्त १९४५ को अमेरिका द्वारा अणुबम गिराए जाने के दो दिन बाद ८ अगस्त १९४५ को सोवियत रूस ने जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और रूसी सेना ने पूरी शक्ति के साथ कोरिया पर १४ अगस्त से अधिकार करना प्रारम्भ कर दिया और शीघ्र ही कोरिया के उत्तरी-पूर्वी भाग पर अधिकार कर लिया| १६ अगस्त को वोंसान पर और २४ अगस्त को प्योंगयांग पर रूस अधिकार कर चुका था|
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अमेरिका की सेना भी जो जापान के विरुद्ध युद्धरत थी, ८ सितम्बर १९४५ को वहाँ पहुँच गयी और बंदरबाँट की तरह रूस और अमेरिका ने एक संधि कर के ३८ वीं अक्षांस रेखा पर कोरिया को दो भागों .... उत्तरी और दक्षिणी - में विभाजित कर के संयुक्त रूप से उसे प्रशासित करना शुरू कर दिया| और भी अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ इन दिनों हुईं जिन्हें इस लेख में लिखने की आवश्यकता मैं नहीं समझता|
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कोरियाई नेताओं से रूस और अमेरिका ने वादा किया था कि पाँच वर्ष के पश्चात वे पूरे देश को उन्हें सौंप देंगे| कोरिया की जनता इस व्यवस्था के विरुद्ध थी, वे अपनी पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते थे| कोरिया में विरोध प्रदर्शन होने लगे| इन परिस्थितियों में अमेरिकी प्रभाव वाले दक्षिणी हिस्से में १९४८ में चुनाव कराये गए और वहाँ एक अमेरिकी समर्थक सरकार का गठन हो गया|
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उत्तरी क्षेत्र में रूस और चीन के समर्थन वाली साम्यवादी सरकार बनी| उत्तरी कोरिया की सरकार ने दक्षिण कोरिया की सरकार को मान्यता नहीं दी| १९४८ में सोवियत संघ यानी रूस की सेनाएँ कोरिया से चली गईं और १९४९ में अमेरिकी सेना भी दक्षिण कोरिया से हट गयी|
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२५ जून १९५० को उत्तरी कोरिया की सरकार ने रूसी शासक स्टालिन की शह पर देश के एकीकरण के लिए दक्षिणी भाग पर आक्रमण कर दिया| यह कोरियाई युद्ध की शुरुआत थी जिसमें पराजय और हानि तो कोरिया की जनता की ही हुई|
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इस युद्ध में छः दिनों के भीतर भीतर ही दक्षिणी कोरिया लड़ाई में लगभग हार गया था, और पूरे कोरिया पर उत्तरी कोरिया के शासक किम इल सुंग का शासन पक्का ही हो गया था, पर अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से एक प्रस्ताव पारित करवा कर सहयोगी देशों की सेना के साथ दक्षिणी कोरिया की सहायता का अधिकार ले कर अपने दस लाख सैनिक युद्धभूमि में उतार दिए|
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अमेरिका ने भारत पर पूरा जोर डाला कि भारत भी अमेरिका की सहायता के लिए अपनी सेना भेजे पर भारत ने मना कर दिया| सिर्फ अपनी एक मेडिकल यूनिट घायलों की सहायतार्थ भेजी|
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अमेरिका की सेना जीतती हुई जब उत्तरी कोरिया की ओर बढने लगी तब चीन भी पूरी शक्ति के साथ इस युद्ध में कूद पड़ा और अमेरिकी सेना को पीछे हटना पड़ा| इस बीच में महाशक्तियों के बीच कई दांवपेंच खेले गए पर सन १९५३ में स्टालिन की मृत्यु से परिस्थिति बदल गयी, और २७ जुलाई को युद्ध विराम हो गया|
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भारत ने शांति स्थापित करने के बहुत प्रयास किये थे| युद्ध बंदियों की अदला बदली में सहायता के लिए भारत ने अपने छः हज़ार सैनिक भी भेजे थे| पर चीन के विरोध के कारण भारत पीछे हट गया|
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इस युद्ध में अमेरिका का सेनापति जनरल डगलस मैकार्थर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि सिर्फ स्थल सेना की सहायता से वह यह युद्ध नहीं जीत सकता अतः उसने अपने वायुयानों से भयानक बमवर्षा करानी आरम्भ कर दी| यह अमेरिका का महा भयानक अक्षम्य पाप था|
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अमेरिकी वायुसेना ने उत्तरी कोरिया पर छः लाख पैंतीस हज़ार नापाम बम गिराए जिनसे उत्तरी कोरिया के हजारों गाँव और नगर राख के ढेर में बदल गए| इस बमबारी से उत्तरी कोरिया के ५००० स्कूल, १००० हॉस्पिटल और छह लाख घर तबाह हो गए| इस बम वर्षा से उत्तरी कोरिया की २० प्रतिशत जनसंख्या मारी गयी| इसीलिए उत्तरी कोरिया अमेरिका को अपना शत्रु मानता है| इस युद्ध में अमेरिका के ३३ हज़ार से अधिक सैनिक मारे गए| इस युद्ध में न तो कोई जीता और न कोई हारा|
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इसके बाद का और वर्त्तमान का घटनाक्रम तो सब को पता है अतः मैं इस विषय पर और नहीं लिख कर इस लेख का समापन कर रहा हूँ| आजकल अमेरिका और उत्तरी कोरिया के बीच में तनाव चल रहा है, उसके कारणों का लोगों को पता नहीं है| इस में जितना दोष उत्तरी कोरिया का है उससे कई गुणा अधिक दोष अमेरिका का है| मुझे दक्षिण कोरिया जाने का भी अवसर कई बार मिला हैऔर वहाँ खूब घूमा फिरा हूँ| अमेरिकी सेना के कई सैनिको और अधिकारियों से भी बातचीत करने का अवसर मिला है| अमेरिकी लोग बहुत चतुर और देशभक्त होते हैं| उनसे बात करो तो वे घर परिवार और अन्य विषयों पर तो खूब बात करेंगे पर अपने देश के विरुद्ध किसी भी तरह की बात नहीं होने देंगे| मुझे अमेरिका भी जाने का कई बार अवसर मिला है अतः अमेरिकी मनोविज्ञान को समझता हूँ| अमेरिका भारत को अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करेगा पर भारत का ह्रदय से मित्र कभी नहीं होगा| भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए|
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अब रही बात मंचूरिया की| वह देश अब चीन के अधिकार में है| मुझे सन १९८८ में युक्रेन के ओडेसा नगर में एक वृद्धा अति विदुषी तातार मुस्लिम महिला ने अपने घर निमंत्रित किया था| वह महिला मंचूरिया में दाँतों की डॉक्टर थी और मंचूरिया पर चीन के अधिकार के बाद १० वर्ष तक चीन में राजनीतिक बंदी थी| उसने वहाँ की परिस्थितियों के बारे मुझे विस्तार से बताया| वह एक अलग विषय है जिसका इस लेख से कोई सम्बन्ध नहीं है|
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सभी को शुभ कामनाएँ और दीपावली की राम राम |
१८ अक्टूबर २०१७

रूप चतुर्दशी ....

>>>>> आज का दिन ज्ञान के प्रकाश से जगमगाने का दिन है .....
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आज रूप चतुर्दशी है जिसे नर्क चतुर्दशी व छोटी दीपावली भी कहते हैं| आज के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था| इस युद्ध में उनके साथ उनकी पत्नी सत्यभामा भी थी| कुछ समय के लिए जब भगवान श्रीकृष्ण मूर्छित हो गए, उस समय सत्यभामा ने अपने दिव्यास्त्रों के साथ नरकासुर से युद्ध किया|
इस दिन के बारे में एक कथा पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा रंतिदेव के बारे भी है|
बंगाल में यह दिन काली चौदस के नाम से जाना जाता है|
एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके देवताओं को राजा बलि के आतंक से मुक्ति दिलाई थी| भगवान ने राजा बलि से वामन अवतार के रूप में तीन पैर जितनी जमीन दान के रूप में मांगकर उसका अंत किया था| राजा बलि के बहुत ज्ञानी होने के कारण भगवान विष्णु ने उसे साल में एक दिन याद किये जाने का वरदान दिया था| अतः नरक चतुर्दशी ज्ञान के प्रकाश से जगमगाने का दिन माना जाता है|
इस दिन हनुमान जी की भी विशेष पूजा उनके भक्त करते हैं|
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आज रूप निखारने का दिन है| आज रूप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व शरीर पर तेल व उबटन लगा कर एक बाल्टी में जल भरकर उसमें अपामार्ग के पौधे का टुकड़ा डाल कर उस जल से स्नान करने का महत्त्व है| अपामार्ग का पौधा न मिले तो एक बहुत ही कड़वा फल रखते हैं| सूर्योदय से पूर्व स्नान करते समय स्नानागार में एक दीपक भी जलाने की प्रथा रही है|
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आज के दिन तेल उबटन लगाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से देह रूपवान हो जायेगी| रूप चौदस का दिन बहुत ही शुभ दिन है अतः प्रसन्न रहकर भक्तिभाव से अपने इष्ट की उपासना करें|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

ध्यान साधना ......

ध्यान साधना ......
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परमात्मा के प्रति पूर्ण प्रेम के साथ, जिह्वा को ऊपर पीछे की ओर मोड़ कर तालु में लगाकर, भ्रूमध्य पर दृष्टी एकाग्र कर, नीरव शान्त तथा एकान्त स्थल में सुविधाजनक मुद्रा में कमर सीधी रखते हुए बैठकर धीरे-धीरे श्रद्धापूर्वक अजपा-जप, ओंकार, द्वादशाक्षारी भागवत मन्त्र, गायत्री मन्त्र, या किसी अन्य गुरु-प्रदत्त मन्त्र को मानसिक रूप से जपते हुए ध्यान का अभ्यास किया जाता है|
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किसी भी साधना को करने का महत्त्व है, न कि उसकी चर्चा करने का| आपके सामने फल रखे हैं तो आनंद उनको खाने में है, न कि उनकी विवेचना करने में| अतः उसकी अनावश्यक चर्चा न कर, उसका अभ्यास ही करना चाहिए| यह साधना एक क्षण में भी संपन्न हो सकती है और कई जन्मों में भी , अतः इसकी चिंता छोड़ कर इसका परिणाम भी परमात्मा को अर्पित कर देना चाहिए|
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हमारा मन परमात्मा के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी पूर्ण विश्रान्ति नहीं पा सकता, अतः परमात्मा का स्मरण नित्य निरंतर रखने का अभ्यास करना चाहिए| इसके अतिरिक्त स्वाध्याय और सत्संग भी यथासंभव करना चाहिए| जो साहित्य निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे वही सार्थक है, और परमात्मा का निरंतर संग ही वास्तविक सत्संग है|
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इधर उधर के अनावश्यक भ्रमजाल में न फँस कर परमात्मा से प्रेम करो| इसी में जीवन की सार्थकता है|

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ अक्टूबर २०१७

भारत के सबसे दक्षिणी भौगोलिक भाग "इंदिरा पॉइंट" का प्रकाश स्तम्भ .....

भारत के सबसे दक्षिणी भौगोलिक भाग "इंदिरा पॉइंट" का प्रकाश स्तम्भ .....
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भारत का सबसे दक्षिणी भौगोलिक भाग "इंदिरा पॉइंट" और वहाँ स्थित प्रकाश स्तम्भ २६ दिसंबर २००४ तक भारत के सर्वाधिक मन मोहक स्थानों में से एक था (इसके चित्र गूगल पर देख सकते हैं)| वहाँ जाने और प्रकाश स्तम्भ पर चढ़कर चारों ओर के नयनाभिराम दृश्य देखने का सुअवसर मुझे २००१ में मिला था| भारत सरकार के Department of Light House and Light Ships के समुद्री अनुसंधान जहाज "प्रदीप" पर यात्रा कर के ग्रेट निकोबार द्वीप के बंदरगाह "कैम्बल बे" गया था| वहाँ पोर्ट ब्लेयर से यात्री जहाज भी जाते हैं| जिन स्थानों पर संरक्षित जनजातियाँ रहती हैं उन स्थानों पर जाने के लिए पर्यटकों को तो प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है, जो आराम से मिल जाती है| वहाँ वायुसेना और तटरक्षक बल के ठिकाने हैं और अति महत्वपूर्ण क्षेत्र होने के कारण बिना पूर्व अनुमति के जाना संभव नहीं है|
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"कैम्बल बे" से कुछ किलोमीटर दूर तक तो गाड़ी में जाना पड़ा और सड़क टूटी होने के कारण लगभग आधा किलोमीटर पैदल चलने के पश्चात् वहाँ पहुँच गए| वहाँ काम करने वाले कर्मचारियों से मिलकर वहाँ के प्रकाश स्तम्भ पर जो उस समय भूमि पर ही था चढ़ा और चारों ओर के नयनाभिराम दृश्य देखकर अभिभूत हो गया| उस समय चित्र लेने की अनुमति नहीं थी इसलिए कोई चित्र नहीं लिए| अब तो वहाँ के चित्र गूगल पर देख सकते हैं| बापस भी वैसे ही आना पड़ा| पैदल चलते हुए वहाँ के घने वन में कई बड़े सुन्दर और विचित्र पक्षी देखे जो पहले अन्यत्र कहीं भी नहीं देखे थे, इंडोनेशिया और मलयेशिया में भी नहीं|
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२६ दिसंबर २००४ को जब सुनामी आई थी तब प्रचंड लहरों के कारण वहाँ प्रकाश स्तम्भ के चारों ओर की भूमि कट गयी और प्रकाश स्तम्भ के चारों ओर पानी गहरा हो गया| वहाँ रहने वाले बीस परिवार और चार जीव वैज्ञानिक जो वहाँ के कछुओं पर अनुसंधान कर रहे थे, उस सुनामी में मारे गए| वहाँ धीरे धीरे सामान्य स्थिति बहाल कर दी गयी थी और वहाँ के प्रकाश प्रक्षेपण यंत्र और रडार आदि भी ठीक कर दिए गए, पर प्रकाश स्तम्भ अभी भी चार मीटर गहरे समुद्री पानी में है|
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"कैम्बल बे" बहुत सुन्दर स्थान है| वहाँ के समुद्र तट तो बहुत ही सुन्दर हैं| कोई हिंसक जीव वहाँ नहीं हैं अतः बिना किसी भय के प्रातःकाल वहाँ के समुद्री तटों पर अकेले ही घूमने का आनंद कई दिनों तक लिया| पर्यटक बहुत कम आते हैं अतः कोई भीड़ नहीं होती| तमिलनाडु और केरल से आकर बहुत लोग वहाँ बस गये हैं, कुछ पंजाबी भी हैं| सभी लोग हिंदी बोलते और समझते हैं|
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इंदिरा पॉइंट का पूर्व नाम Pygmalion Point था| वर्त्तमान नाम श्रीमती इंदिरा गाँधी के नाम पर पड़ा जो वहाँ १९ फरवरी १९८४ को पधारी थीं| प्रकाश स्तम्भ तो ३० अप्रेल १९७२ को ही चालू हो गया था|
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अगर आप एकांत प्रेमी हैं और भीड़भाड़ पसंद नहीं है तो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के कई द्वीप आपको पसंद आयेंगे| समुद्र में मूंगे की चट्टानों (Coral reefs) में डुबकी लगाने और पानी के नीचे तैरने का शौक है तो लक्षद्वीप के टापुओं में ऐसे कुछ स्थान हैं| श्रीलंका में ट्रिन्कोमाली बड़ा सुन्दर स्थान था| वहाँ अब पता नहीं कैसी स्थिति है, मैं १९८० में वहाँ सपत्नीक गया था| वहाँ भी समुद्र में मूंगे की चट्टाने हैं| एक जीवनरक्षक मार्गदर्शक गोताखोर को किराए पर साथ लेकर अपना शौक पूरा किया|

अहोई अष्टमी पर माताओं को नमन ....

उन सब श्रद्धालु माताओं को नमन जो आज अपनी संतान की लम्बी आयु के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रख रही हैं|
अपने पति के लिए ही नहीं पुत्र के लिए भी यह साधना और त्याग केवल एक भारतीय नारी ही कर सकती है|

जयशंकर प्रसाद की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत कर रहा हूँ ......
"इस अर्पण में कुछ और नहीं, केवल उत्सर्ग छलकता है |
मैं दे दूँ और न फिर कुछ लूँ, इतना ही सरल झलकता है ||
क्या कहती हो ठहरो नारी ! संकल्प अश्रु-जल-से-अपने |
तुम दान कर चुकी पहले ही, जीवन के सोने-से सपने ||
नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास-रजत-नग पगतल में |
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में ||"

कस्मै देवाय हविषा विधेम ? यह सभी की एक शाश्वत जिज्ञासा है .....

कस्मै देवाय हविषा विधेम ? यह सभी की एक शाश्वत जिज्ञासा है .....
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कस्मै देवाय हविषा विधेम ? हम किस देवता की प्रार्थना करें और किस देवता के लिए हवन करें, यजन करें, प्रार्थना करें ? कौन सा देव है,जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर सके, हमको शांति प्रदान कर सके , हमें ऊँचा उठाने में सहायता दे सके ? किस देवता को प्रणाम करें ? ऐसा देव कौन है ?
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अपने ह्रदय में उस परमात्मा को पाने की प्रचंड अग्नि प्रज्ज्वलित कर शिवभाव में स्थित होकर प्रणव की चेतना से युक्त हो अपने अस्तित्व की आहुतियाँ देकर प्रभु की सर्वव्यापकता और अनंतता में विलीन होकर ही हम उस जिज्ञासा को शांत कर सकते हैं | अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का प्रभु में पूर्ण समर्पण कर उनके साथ एकाकार हो जाना ही इस जीवन यज्ञ कि परिणिति है|
ॐ ॐ ॐ ||

धारणा व ध्यान .....

धारणा व ध्यान .....
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हे परमशिव, वह चैतन्य पूर्णतः जागृत हो जहाँ जन्म, मृत्यु और पृथकता का बोध एक स्वप्न है |
मैं समष्टि से पृथक नहीं हो सकता | सृष्ट और असृष्ट जो कुछ भी है वह ही मैं हूँ | यह सारी अनंतता मैं हूँ |
कई ऐसे नक्षत्र मंडल हैं जहाँ से जब प्रकाश चला था तब पृथ्वी का अस्तित्व नहीं था | जब तक वह प्रकाश यहाँ पहुँचेगा तब तक यह पृथ्वी ही नहीं रहेगी, वह नक्षत्र मंडल और उनका प्रकाश भी मैं ही हूँ |
यह समस्त अस्तित्व ..... मेरी देह, मेरा घर और मेरा परिवार है | मैं यह नश्वर देह नहीं हूँ |
मेरा अस्तित्व शुभ और कल्याणमय है |
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ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूणात्पूर्णमुदच्यते | पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||
ॐ खं ब्रह्म खं पुराणं वायुरं खमिति ह स्माह कौर व्यायणीपुत्रों वेदो ये ब्राह्मण विदुर्वेदैनेन यद्वेदितव्यम् ||
(वह ब्रह्मण पूर्ण है, यह जगती पूर्ण है | उस पूर्ण ब्रह्म से ही यह पूर्ण विश्व प्रादुर्भूत हुआ है | उस पूर्ण ब्रह्म में से इस पूर्ण जगत् को निकाल लेने पर पूर्ण ब्रह्म ही शेष रहता है |
ॐ अक्षर से सम्बोधित अनन्त आकाश या परम व्योम ब्रह्म ही है | यह आकाश सनातन परमात्म-रूप है | जिस आकाश में वायु विचरण करता है, वह आकाश ही ब्रह्म है | ऐसा कौरव्यायणी पुत्र का कथन है | यह ओंकार-स्वरूप ब्रह्म ही वेद है | इस प्रकार सभी ज्ञानी ब्राह्मण जानते हैं; क्योंकि जो जानने योग्य है, वह सब इस ओंकार-रूप वेद से ही जाना जा सकता है |)
ॐ ॐ ॐ ||

(भगवान परमशिव को समर्पित होकर उस ओंकार रूपी प्रणव नाद को गहनतम ध्यान से निरंतर सुनते रहें जो बंद या खुले कानों से एकांत में सदा सुनाई देता है)

ॐ तत्सत् | अयमात्मा ब्रह्म | तत्वमसि | सोsहं | ॐ ॐ ॐ ||

क्या महिषासुर और रावण सचमुच मर गये ? .....

क्या महिषासुर और रावण सचमुच मर गये ? .....
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अभी कुछ दिन पूर्व ही हमने विजयदशमी यानि दशहरे का त्यौहार मनाया और स्थान स्थान पर रावण के कागजी पुतलों को जलाया था| इससे पूर्व नवरात्रों में महिषासुरमर्दिनी माँ दुर्गा की आराधना की| अब प्रश्न है कि क्या महिषासुर और रावण सचमुच में ही मर गए हैं?
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नहीं, महिषासुर और रावण दोनों ही अमर और शाश्वत हैं, जब तक सृष्टि है तब तक इनका अस्तित्व बना रहेगा, ये कभी नहीं मर सकते| ये प्रत्येक व्यक्ति के अवचेतन मन में हैं, और हर व्यक्ति को निज प्रयास से अपने अंतर में ही इनका दमन करना होगा| इनका दमन हो सकता है, नाश नहीं|
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महिषासुर हमारे भीतर का तमोगुण है जो प्रमाद, दीर्घसूत्रता आदि अवगुणों के रूप में छिपा हुआ है| हम सब के भीतर यह महिषासुर बहुत गहराई से छिपा है|
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यह रावण हमारे अवचेतन मन में लोभ, कामुकता, अहंकार आदि वासनाओं के रूप में छिपा हुआ है| हम दूसरों का धन, दूसरों के अधिकार आदि छीनना चाहते हैं, अपने अहंकार के समक्ष दूसरों को कीड़े-मकोड़ों से अधिक कुछ नहीं समझते, यह हमारे अंतर का रावण है| नशा अहंकार का हो या मदिरा का, दोनों में विशेष अंतर नहीं है, पर यह अहंकार का नशा मदिरा के नशे से हज़ार गुणा अधिक घातक है| इस नशे में हर रावण स्वयं को राम समझता है|
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हमारे ह्रदय के एकमात्र राजा राम हैं| उन्होंने ही सदा हमारी ह्रदय भूमि पर राज्य किया है, और सदा वे ही हमारे राजा रहेंगे| अन्य कोई हमारा राजा नहीं हो सकता| वे ही हमारे परम ब्रह्म हैं|
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हमारे ह्रदय की एकमात्र महारानी सीता जी हैं| वे हमारे ह्रदय की अहैतुकी परम प्रेम रूपा भक्ति हैं| वे ही हमारी गति हैं| वे ही सब भेदों को नष्ट कर हमें राम से मिला सकती हैं| अन्य किसी में ऐसा सामर्थ्य नहीं है|
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हमारी पीड़ा का एकमात्र कारण यह है कि हमारी सीता का रावण ने अपहरण कर लिया है| हम सीता को अपने मन के अरण्य में गलत स्थानों पर ढूँढ रहे हैं और रावण के प्रभाव से दोष दूसरों को दे रहे हैं, जब कि कमी हमारे प्रयास की है| यह मायावी रावण ही हमें भटका रहा है| सीता जी को पा कर ही हम रावण का नाश कर सकते हैं, और तभी राम से जुड़ सकते हैं|
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राम से एकाकार होने तक इस ह्रदय की प्रचंड अग्नि का दाह नहीं मिटेगा, और राम से पृथक होने की यह घनीभूत पीड़ा हर समय निरंतर दग्ध करती रहेगी| राम ही हमारे अस्तित्व हैं और उनसे एक हुए बिना इस भटकाव का अंत नहीं होगा| उन से जुड़कर ही हमारी वेदना का अंत होगा और तभी हम कह सकेंगे ..... "शिवोSहं शिवोSहं अहं ब्रह्मास्मि"|
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इस हिन्दू राष्ट्र में धर्म रूपी बैल पर बैठकर भगवान शिव ही विचरण करेंगे, और नवचेतना को जागृत करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी ही बजेगी| यहाँ के राजा सदा राम ही रहेंगे| सनातन हिन्दू धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा होगी व असत्य और अन्धकार की राक्षसी शक्तियों का निश्चित रूप से दमन होगा| भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

= कृपा शंकर =

प्राचीन भारत की वैदिक राष्ट्र प्रार्थना ......

प्राचीन भारत की वैदिक राष्ट्र प्रार्थना ......
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"आ ब्रह्मण ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतां राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्योतिव्याधि महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढानडवानाशुः सप्ति पुरन्धिर्योषाः जिष्णु रथेष्ठा सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे निकामे न पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्यतां योगक्षेमो न कल्पतां"
- यजुर्वेद 22, 22
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||ॐ|| इस राष्ट्र में ब्रह्मतेजयुक्त ब्राह्मण उत्पन्न हों| धनुर्धर, शूर और बाण आदि का उपयोग करने वाले कुशल क्षत्रिय पैदा हों| अधिक दूध देने वाली गायें हों| अधिक बोझ ढो सकें ऐसे बैल हों| ऐसे घोड़े हों जिनकी गति देखकर पवन भी शर्मा जाये| राष्ट्र को धारण करने वाली बुद्धिमान तथा रूपशील स्त्रियां पैदा हों| विजय संपन्न करने वाले महारथी हों| समय समय पर अच्छी वर्षा हो, वनस्पति, वृक्ष और उत्तम फल हों| हमारा योगक्षेम सुखमय बने| ||ॐ ॐ ॐ ||