Wednesday 18 October 2017

धारणा व ध्यान .....

धारणा व ध्यान .....
.
हे परमशिव, वह चैतन्य पूर्णतः जागृत हो जहाँ जन्म, मृत्यु और पृथकता का बोध एक स्वप्न है |
मैं समष्टि से पृथक नहीं हो सकता | सृष्ट और असृष्ट जो कुछ भी है वह ही मैं हूँ | यह सारी अनंतता मैं हूँ |
कई ऐसे नक्षत्र मंडल हैं जहाँ से जब प्रकाश चला था तब पृथ्वी का अस्तित्व नहीं था | जब तक वह प्रकाश यहाँ पहुँचेगा तब तक यह पृथ्वी ही नहीं रहेगी, वह नक्षत्र मंडल और उनका प्रकाश भी मैं ही हूँ |
यह समस्त अस्तित्व ..... मेरी देह, मेरा घर और मेरा परिवार है | मैं यह नश्वर देह नहीं हूँ |
मेरा अस्तित्व शुभ और कल्याणमय है |
.
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूणात्पूर्णमुदच्यते | पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||
ॐ खं ब्रह्म खं पुराणं वायुरं खमिति ह स्माह कौर व्यायणीपुत्रों वेदो ये ब्राह्मण विदुर्वेदैनेन यद्वेदितव्यम् ||
(वह ब्रह्मण पूर्ण है, यह जगती पूर्ण है | उस पूर्ण ब्रह्म से ही यह पूर्ण विश्व प्रादुर्भूत हुआ है | उस पूर्ण ब्रह्म में से इस पूर्ण जगत् को निकाल लेने पर पूर्ण ब्रह्म ही शेष रहता है |
ॐ अक्षर से सम्बोधित अनन्त आकाश या परम व्योम ब्रह्म ही है | यह आकाश सनातन परमात्म-रूप है | जिस आकाश में वायु विचरण करता है, वह आकाश ही ब्रह्म है | ऐसा कौरव्यायणी पुत्र का कथन है | यह ओंकार-स्वरूप ब्रह्म ही वेद है | इस प्रकार सभी ज्ञानी ब्राह्मण जानते हैं; क्योंकि जो जानने योग्य है, वह सब इस ओंकार-रूप वेद से ही जाना जा सकता है |)
ॐ ॐ ॐ ||

(भगवान परमशिव को समर्पित होकर उस ओंकार रूपी प्रणव नाद को गहनतम ध्यान से निरंतर सुनते रहें जो बंद या खुले कानों से एकांत में सदा सुनाई देता है)

ॐ तत्सत् | अयमात्मा ब्रह्म | तत्वमसि | सोsहं | ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment