Sunday, 17 April 2022

भगवान की कृपा के बिना, भगवान का नाम भी कोई ले नहीं सकता ---

 भगवान की कृपा के बिना, भगवान का नाम भी कोई ले नहीं सकता। वे स्वयं ही हमारे माध्यम से अपनी स्वयं की साधना करते हैं। हम तो निमित्त मात्र हैं। यह कोई सैद्धान्तिक बात नहीं बल्कि शत-प्रतिशत अनुभूत सत्य है।

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एक दिन अचानक ही बड़ी विचित्र घटना हुई। ध्यान में अचानक ही मैंने पाया कि मैं तो कहीं पर भी हूँ ही नहीं, सामने भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही पद्मासन लगाए अपने आसन पर बिराजमान हैं, और अपना स्वयं का ध्यान कर रहे हैं। तब से वे ही उपासक, उपास्य और उपासना हैं। अपनी उपासना वे स्वयं ही करते हैं| वे ही साधक, साधना, और साध्य हैं। वे ही दृष्टि, दृश्य और दृष्टा हैं। साक्षीमात्र होने के सिवाय मेरी कोई अन्य भूमिका नहीं है। सब कुछ उनको समर्पित कर दिया है, अपना कहने को कुछ भी मेरे पास नहीं है, मेरा अस्तित्व ही कहीं नहीं रहा है। सब कुछ वे भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण ही हैं|
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ अप्रेल २०२१

रात्रि को जिस क्षण हम सोते हैं, वह सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्षण है ---

 रात्रि को जिस क्षण हम सोते हैं, वह सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्षण है ---

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सोने से पूर्व रात्रि को पूर्ण सत्यनिष्ठा से किया गया परमात्मा का ध्यान सबसे अधिक प्रभावशाली और महत्वपूर्ण होता है। रात्रि में यदि हम परमात्मा का ध्यान कर के सोते हैं तो निश्चित रूप से अगले दिन का आरंभ बड़ा ही शुभ होगा। परमात्मा को अपने हृदय का सम्पूर्ण प्रेम दें। फिर सिर के नीचे तकिये के स्थान पर जगन्माता का हाथ, और बिस्तर के स्थान पर जगन्माता की गोद में, निश्चिंत होकर सो जाएँ। सोने से पूर्व अपनी सारी चिंताएँ जगन्माता को सौंप दें। जो जगन्माता पूरी सृष्टि का पालन-पोषण कर रही हैं, वे अपनी हरेक संतान का कल्याण भी करती हैं।
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अगले दिन परमात्मा की चेतना में ही जागेंगे। उठते ही निवृत होकर यथासंभव अधिकाधिक समय तक परमात्मा का ध्यान करें। पूरे दिन परमात्मा को अपनी स्मृति में रखें। जीवन में जो भी घटित होगा, वह शुभ ही शुभ होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
१७ अप्रेल २०२१