जगन्माता से प्रेम याचना ..........
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माँ, प्रेम का एकमात्र स्त्रोत तो तुम परमात्मा का मातृरूप ही हो| तुम तो सदा करुणामयी और प्रेममयी हो| तुम्हीं ने मुझे सदा सन्मार्ग पर चलने की शक्ति और प्रेरणा दी है| तुम्हारी इस सृष्टि में मैं प्रेम की खोज में भटक रहा था जहाँ मुझे सिर्फ निराशा ही मिली है| यहाँ कोई मुझे प्रेम नहीं कर सकता, किसी को प्रेम करना आता भी नहीं है|
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इस लौकिक जीवन में गर्भस्थ होने से अब तक का सारा प्रेम तुमने ही मुझे माता-पिता, भाई-बहिन, सम्बन्धियों और मित्रों के रूप में दिया है|
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हे जगन्माता, मैं अपना समस्त प्रेम बिना कुछ चाहे बापस तुम्हें अर्पित करता हूँ और तुम मुझे अपने प्रेम में ही लीन कर दो| इसके अतिरिक्त मुझे अन्य कुछ भी नहीं चाहिए| सभी रूपों में तो तुम ही हो| मेरे पास तुम्हें देने के लिए प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ है भी तो नहीं, सब कुछ तो तुम्हारा ही है|
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इस प्रेम को ही नहीं, इस पृथकता के बोध और इस अस्तित्व को भी स्वीकार करो| सब कुछ तुम्हें समर्पित है|
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
माघ कृ.२ वि.स.२०७२, 26 जनवरी 2016
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माँ, प्रेम का एकमात्र स्त्रोत तो तुम परमात्मा का मातृरूप ही हो| तुम तो सदा करुणामयी और प्रेममयी हो| तुम्हीं ने मुझे सदा सन्मार्ग पर चलने की शक्ति और प्रेरणा दी है| तुम्हारी इस सृष्टि में मैं प्रेम की खोज में भटक रहा था जहाँ मुझे सिर्फ निराशा ही मिली है| यहाँ कोई मुझे प्रेम नहीं कर सकता, किसी को प्रेम करना आता भी नहीं है|
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इस लौकिक जीवन में गर्भस्थ होने से अब तक का सारा प्रेम तुमने ही मुझे माता-पिता, भाई-बहिन, सम्बन्धियों और मित्रों के रूप में दिया है|
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हे जगन्माता, मैं अपना समस्त प्रेम बिना कुछ चाहे बापस तुम्हें अर्पित करता हूँ और तुम मुझे अपने प्रेम में ही लीन कर दो| इसके अतिरिक्त मुझे अन्य कुछ भी नहीं चाहिए| सभी रूपों में तो तुम ही हो| मेरे पास तुम्हें देने के लिए प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ है भी तो नहीं, सब कुछ तो तुम्हारा ही है|
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इस प्रेम को ही नहीं, इस पृथकता के बोध और इस अस्तित्व को भी स्वीकार करो| सब कुछ तुम्हें समर्पित है|
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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
माघ कृ.२ वि.स.२०७२, 26 जनवरी 2016
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