Thursday, 26 January 2017

स्वयं को सीमित या परिभाषित ना करें  .....
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जीवन एक ऊर्ध्वगामी और सतत विस्तृत प्रवाह है कोई जड़ बंधन नहीं|
स्वयं को किसी भी प्रकार के बंधन में ना बाँधें| इसे प्रवाहित ही होते रहने दें| अपने व्यवहार, आचरण और सोच में कोई जड़ता ना लायें| अपने अहंकार को किनारे पर छोड़ दें और प्रभु चैतन्य के आनंद में स्वयं को प्रवाहित होने दें| सारी अनन्तता और प्रचूरता आपकी ही है|

आप ना तो स्त्री हैं और ना पुरुष| आप एक शाश्वत आत्मा हैं|
आप कर्ता नहीं हैं| कर्ता तो परमात्मा है| आप तो उसके उपकरण मात्र हैं|
आप ना तो पापी हैं और ना पुण्यात्मा| आप परमात्मा की छवि मात्र हैं|

आपकी मनुष्य देह आपका वाहन मात्र है| आप यह देह नहीं हैं| आप का स्तर तो देवताओं से भी ऊपर है| अपने देवत्व से भी उपर उठो|

किसी भी विचारधारा या मत-मतान्तर में स्वयं को सीमित ना करें| आप सबसे उपर हैं| ये सब आपके हैं, आप उनके नहीं|

आप सिर्फ और सिर्फ भगवान के हैं, अन्य किसी के नहीं| उनकी सारी सृष्टि आपकी है, आप अन्य किसी के नहीं हैं और कोई आपका नहीं है| अपने समस्त बंधन और सीमितताएँ उन्हें पुनर्समर्पित कर उनके साथ ही जुड़ जाओ|
आप शिव है, जीव नहीं| अपने शिवत्व को व्यक्त करो|

शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि||

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