Friday 17 November 2017

पञ्चमुखी महादेव के आध्यात्मिक रूप का सारांश .....

पञ्चमुखी महादेव के आध्यात्मिक रूप का सारांश .....
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गहरे ध्यान में दीर्घ काल से साधनारत योगमार्ग के साधकों को आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य में एक स्वर्णिम आभा के दर्शन होते हैं| फिर धीरे धीरे उस स्वर्णिम आभा के मध्य में एक नीले रंग का प्रकाश दिखाई देता है| फिर धीरे धीरे उस नीले रंग के प्रकाश के मध्य में एक सफ़ेद रंग का प्रकाश दिखाई देता है, जिसके मध्य में एक अत्यधिक चमकदार सफ़ेद रंग के ही पंचकोणीय नक्षत्र के दर्शन होने लगते हैं| उस पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र का दर्शन एक बहुत बड़ी उपलब्धि है| उसी पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र का उन्नत योगी ध्यान करते हैं| वे उस ज्योतिर्मय नक्षत्र से भी परे जाने की साधना करते हैं|
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इस ज्योतिर्मय क्षेत्र को कूटस्थ कहते हैं और निज चेतना की उसमें स्थिति कूटस्थ चैतन्य कहलाती है| कूटस्थ चैतन्य में प्रणव ध्वनि ओंकार जिसे अनाहत नाद भी कहते हैं का स्वतः ही श्रवण होने लगता है जिसमें रम जाना राममय हो जाना है| ॐ ही कूटस्थ अक्षर ब्रह्म है| वह विराट श्वेत ज्योति ... ज्योतिर्मय ब्रह्म है, वही क्षीर सागर है जहाँ शेषाशायी भगवान विष्णु का निवास है|
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वह पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र पंचमुखी महादेव हैं| उन्नत योगीगण उन्हीं का ध्यान करते हैं| प्राण ऊर्जा को मूलाधार चक्र से उठाकर अन्य सभी चक्रों को भेदते हुए सहस्त्रार तक लाना ही कुण्डलिनी का जागरण है, और उस महाशक्ति कुण्डलिनी का परमशिव से मिलन ही योग है|
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ब्रह्मांड पाँच तत्वों से बना है ..... जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश| भगवान शिव पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले है| शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं ..... ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात|
भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व के अधिपति हैं| इसका अर्थ है सबके स्वामी|
पूर्वमुख का नाम 'तत्पुरुष' है, जो वायु तत्व के अधिपति हैं|
दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नितत्व के अधिपति हैं|
उत्तरी मुख का नाम वामदेव है, जो जल तत्व के अधिपति हैं|
पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं|
भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं|
भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है| काल की गणना 'पंचांग' के द्वारा होती है| काल के पाँच अंग ..... तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं|
रुद्राक्ष सामान्यत: पंचमुखी ही होता है|
प्राण भी पांच ही हैं जो पञ्चप्राण कहलाते हैं|
शिव-परिवार में भी पांच सदस्य है..... शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर| नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं|
शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र .... 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है|
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शिव का अर्थ है ..... कल्याणकारी| शंभू का अर्थ है ..... मंगलदायक| शंकर का अर्थ है ..... शमनकारी और आनंददायक|
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है| इनमें कोई भेद नहीं है|
शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है| यही हमारा लक्ष्य है|
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ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ||
ॐ नमःशिवाय || ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
१६ नवम्बर २०१७

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