Wednesday 21 February 2018

हमें पानीपत के तृतीय युद्ध वाली मानसिकता से बाहर आना ही होगा .....

हमें पानीपत के तृतीय युद्ध वाली मानसिकता से बाहर आना ही होगा .....
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पानीपत का तृतीय युद्ध अति शक्तिशाली मराठा सेना अपने सेनापति की अदूरदर्शिता और गलत निर्णय के कारण हारी थी| वह हिन्दुओं की एक अत्यंत भयावह पराजय थी| पर उससे हमने कोई सबक नहीं लिया, और वे ही भूलें हम अब तक करते आये हैं| चीन से युद्ध भी हम उसी भूल से हारे| कारगिल के युद्ध में भी वही भूल हमने नियंत्रण रेखा को पार नहीं कर के की,
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पानीपत के तृतीय युद्ध में अगर मराठा सेना आगे बढकर पहले आक्रमण करती तो निश्चित रूप से विजयी होतीं और पूरे भारत पर उनका राज्य होता| युद्धभूमि में जो पहले आगे बढकर आक्रमण करता है पलड़ा उसी का भारी रहता है| उनको पता था कि आतताई अहमदशाह अब्दाली कुछ अन्य नवाबों की फौजों के साथ सिर्फ विध्वंश और लूटने के उद्देश्य से आ रहा है| उन्हें आगे बढ़कर मौक़ा मिलते ही उसे नष्ट कर देना चाहिए था| अन्य हिन्दू राजाओं से भी सहायता माँगनी चाहिए थी| पर मराठा सेना उसके यमुना के इस पार आने की प्रतीक्षा करती रहीं| अब्दाली निश्चिन्त था कि जब तक मैं नदी के उस पार नहीं जाऊंगा मराठा सेना आक्रमण नहीं करेगी| उसने कब और कैसे नदी पार की मराठों को पता ही नहीं चला और ऐसे अवसर पर आक्रमण किया जब मराठा सेना असावधान और निश्चिन्त थीं| मराठों को सँभलने का अवसर भी नहीं मिला|
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कारगिल के युद्ध में भी वाजपेयी जी ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि हम काल्पनिक नियंत्रण रेखा को किसी भी स्थिति में पार नहीं करेंगे| पकिस्तान तो निश्चिन्त हो गया था कि भारत किसी भी परिस्थिति में नियंत्रण रेखा को पार नहीं करेगा| यह हमारी मुर्खता थी| यदि हमारी सेना नियंत्रण रेखा को पार कर के आक्रमण करती तो न तो हमारे इतने सैनिक मरते और न युद्ध इतना लंबा चलता|
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पकिस्तान भारत पर कभी भी आणविक आक्रमण कर सकता है| इस से पहिले कि पाकिस्तान भारत पर आक्रमण करे, भारत को उसके आणविक शस्त्रों का नाश कर उसको चार टुकड़ों में बाँट देना चाहिए| तभी भारत में शान्ति स्थापित हो सकती है|

१९ फरवरी २०१७

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