Friday 29 December 2017

मेरी आस्था अब बाहरी जगत से लगभग समाप्त हो चुकी है .....

मेरी आस्था अब बाहरी जगत से लगभग समाप्त हो चुकी है. किसी से भी अब कोई अपेक्षा, आशा और कामना नहीं रही है. एकमात्र आस्था परमात्मा में ही बची है. वह आस्था ही मेरा जीवन है. दिन प्रतिदिन अधिकाधिक अंतर्मुखी हो रहा हूँ. यह बाहर का जगत बड़ा ही निराशाजनक और दुःखदायी है. इसमें अब कोई रूचि नहीं है. एकमात्र सत्य परमात्मा ही है.
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मैं सिर्फ उन्हीं लोगों के संपर्क में रहना चाहता हूँ जिन्हें परमात्मा से प्रेम है, जो दिनरात निरंतर परमात्मा का चिंतन करते हैं और परमात्मा को पाना चाहते हैं. अन्यों से अब कोई लेना-देना नहीं है.
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एक आलोकमय सृष्टि मेरे समक्ष है जहाँ कोई अन्धकार नहीं है, प्रकाश ही प्रकाश है, वही मेरा गंतव्य है. भगवान श्रीकृष्ण के शब्दों में ....
"न तद भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः |
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ||"
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

२१ दिसंबर २०१७

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