Tuesday 20 March 2018

पृथक अस्तित्व का बोध एक मायावी भ्रम है .....

पृथक अस्तित्व का बोध एक मायावी भ्रम है .....
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अपनी आध्यात्मिक यात्रा में हमारे में जब तक कर्ताभाव, यानि ..... साधक, गुरु, शिष्य, अनुयायी, किसी धार्मिक या आध्यात्मिक संगठन का सदस्य, या कुछ भी पृथक होने का बोध है ..... तब तक हम वहीं पर हैं जहाँ से हम ने यात्रा आरम्भ की थी| एक कदम भी आगे नहीं बढे हैं| परमात्मा ही एकमात्र सत्य है| हमारा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| पृथक अस्तित्व का बोध ही माया है|
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सबसे पहले परमात्मा को निज जीवन में अवतरित करो, फिर अन्य सब कुछ अपने आप प्राप्त हो जाएगा| जिहोनें भी परमात्मा के अतिरिक्त अन्य उपलब्धियों को प्राथमिकता दी है वे सब जीवन में निराश हुए हैं| हम यह नश्वर देह नहीं, शाश्वत आत्मा, भगवान के साथ एक हैं और सदा रहेंगे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ मार्च २०१८

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