मंत्रम् वा साधयामी, शरीरम् वा पातयामी ---
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आजकल हरेक व्यक्ति आशंकित है कि कुछ न कुछ होने वाला है। हर व्यक्ति इसके लिए तैयारी कर रहा है, लेकिन उसे पता नहीं है कि क्या होने वाला है। व्यक्ति दिन प्रतिदिन स्वार्थी होता जा रहा है, इंद्रिय सुखों को अधिकाधिक भोगना चाहता है। छल-कपट और झूठ का सामान्य होना -- एक आने वाले विनाश की निशानी है। पता नहीं कमी स्वयं की है या अन्य किन्हीं कारणों की। लेकिन भगवान के वचनों पर विश्वास नहीं किया इसी लिए हमें ये सब दुःख और पीड़ाएँ हैं।
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मुझे भगवान का स्पष्ट उपदेश और आदेश था कि --- "तुम्हारी एकमात्र समस्या -- ईश्वर की प्राप्ति है, अन्य कोई भी समस्या तुम्हारी नहीं है। सब समस्याएँ परमात्मा की हैं। अपनी चेतना को निरंतर कूटस्थ में रखो और हर समय परमात्मा का चिंतन करो।"
लेकिन मैं स्वयं निष्ठावान नहीं रह पाया। दूसरों को क्या दोष दूँ?
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कहते हैं कि - "जागो तब सबेरा"। जो हुआ सो हुआ, अब यह आगे न हो। हे प्रभु अब सब कुछ आपका है, मेरा कुछ भी नहीं। मेरी बुराई-भलाई, बुरा-अच्छा, गलत-सही -- सब कुछ आपको समर्पण। या तो मेरा समर्पण ही सिद्ध हो या फिर यह भौतिक शरीर ही नष्ट हो। अब तुम्हारे बिना यहाँ और नहीं रह सकते। तुम्हें इसी क्षण प्रकट होना ही होगा।
ॐ तत्सत् !!ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ नवंबर २०२२
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