इस जीवन में मेरे अब तक के अनुभूत किये हुए सारे उपदेशों का व जीवन का सार
जो मेरी अत्यल्प सीमित बुद्धि से मुझे अब तक समझ में आया है, वह निम्न है
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"समभाव में स्थिति का निरंतर प्रयास ही सारी साधनाओं का सार है| अहंकारवृत्ति नहीं, बल्कि परमात्मा ही हमारा स्वरुप है| परमात्मा की परोक्षता और स्वयं की परिछिन्नता को मिटाने का एक ही उपाय है ... परमात्मा का ध्यान| परम प्रेम और ध्यान से पराभक्ति और परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है| गुरु रूप परब्रह्म निरंतर मेरे कूटस्थ में स्थायी रूप से बिराजमान हैं| वे ही एकमात्र कर्ता, भोक्ता व मेरा अस्तित्व हैं|"
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मेरे लिए यही अब तक के अनुभूत किये हुए सारे उपदेशों का सार है| इसके अतिरिक्त और कुछ भी सुनने या जानने की मेरी अब कोई इच्छा नहीं है|
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जब मैं इस तथाकथित मेरी देह को देखता हूँ तब स्पष्ट रूप से यह बोध होता है कि यह मूल रूप से एक ऊर्जा-खंड है, जो पहले अणुओं का एक समूह बनी, फिर पदार्थ बनी| फिर इसके साथ अन्य सूक्ष्मतर तत्वों से निर्मित मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार रूपी अंतःकरण जुड़ा| इस ऊर्जा-खंड के अणु निरंतर परिवर्तनशील हैं| इस ऊर्जा-खंड ने कैसे जन्म लिया और धीरे धीरे यह कैसे विकसित हुआ इसके पीछे परमात्मा का एक संकल्प और विचार है| ये सब अणु और सब तत्व भी एक दिन विखंडित हो जायेंगे| पर मेरा अस्तित्व फिर भी बना रहेगा, क्योंकि परमात्मा ही मेरा अस्तित्व है| यह शरीर और पृथकता का बोध तो परमात्मा के मन का एक विचार मात्र है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपाशंकर
२७ जून २०१८
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"समभाव में स्थिति का निरंतर प्रयास ही सारी साधनाओं का सार है| अहंकारवृत्ति नहीं, बल्कि परमात्मा ही हमारा स्वरुप है| परमात्मा की परोक्षता और स्वयं की परिछिन्नता को मिटाने का एक ही उपाय है ... परमात्मा का ध्यान| परम प्रेम और ध्यान से पराभक्ति और परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है| गुरु रूप परब्रह्म निरंतर मेरे कूटस्थ में स्थायी रूप से बिराजमान हैं| वे ही एकमात्र कर्ता, भोक्ता व मेरा अस्तित्व हैं|"
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मेरे लिए यही अब तक के अनुभूत किये हुए सारे उपदेशों का सार है| इसके अतिरिक्त और कुछ भी सुनने या जानने की मेरी अब कोई इच्छा नहीं है|
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जब मैं इस तथाकथित मेरी देह को देखता हूँ तब स्पष्ट रूप से यह बोध होता है कि यह मूल रूप से एक ऊर्जा-खंड है, जो पहले अणुओं का एक समूह बनी, फिर पदार्थ बनी| फिर इसके साथ अन्य सूक्ष्मतर तत्वों से निर्मित मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार रूपी अंतःकरण जुड़ा| इस ऊर्जा-खंड के अणु निरंतर परिवर्तनशील हैं| इस ऊर्जा-खंड ने कैसे जन्म लिया और धीरे धीरे यह कैसे विकसित हुआ इसके पीछे परमात्मा का एक संकल्प और विचार है| ये सब अणु और सब तत्व भी एक दिन विखंडित हो जायेंगे| पर मेरा अस्तित्व फिर भी बना रहेगा, क्योंकि परमात्मा ही मेरा अस्तित्व है| यह शरीर और पृथकता का बोध तो परमात्मा के मन का एक विचार मात्र है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपाशंकर
२७ जून २०१८
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