Saturday, 16 June 2018

परमशिव ही मेरी गति हैं .....

परमशिव ही मेरी गति हैं .....
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अब सब तरह का अध्ययन और स्वाध्याय आदि सब कुछ छोड़ दिया है| इस आयु में अब इतना स्वतंत्र समय नहीं है, पता नहीं कौन सा क्षण अंतिम क्षण हो जाए| एक-एक क्षण अति मूल्यवान है| भगवान अपनी परम कृपा से जो कुछ भी सिखा दें, वह ही स्वीकार्य है, अन्य कुछ भी नहीं| जो जाना हुआ है वह भी रुचिकर नहीं रहा है| सिर्फ शिव, शिव, और शिव, उन्हीं की गहनतम चेतना हर क्षण रहे, बाकि कुछ भी नहीं|
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भगवान से निरंतर प्रेरणा मिलती रहती है कि हर क्षण अपनी चेतना को कूटस्थ में रखो| कूटस्थ में ही अवर्णनीय महाशक्ति व परमशिव की अनुभूतियाँ होती हैं| वे परमशिव ही मेरे प्राण हैं, व वे ही मेरे परमेष्टि गुरु है| आगम का रहस्य भी भगवान शिव वहीं अनावृत करते हैं| सब कुछ विलीन भी उन्हीं में होता है| वे जब प्रत्यक्ष हैं तो अन्य कोई कामना ही नहीं रही है| उन्हीं को निरंतर निहारते रहो, और इधर-उधर अब क्या देखना है?
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अब हर समय परावास्था में ही रहने का अभ्यास करने का आदेश मिल रहा है| बालक कुछ करने में कमजोर हो तो उसकी माता ही उसका कार्य कर देती है| वही यहाँ हो रहा है| सारी कमियाँ जगन्माता अपनी दिव्य उपस्थिति से भर रही हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जून २०१८

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