Saturday, 16 June 2018

हमारा निवास कल्पवृक्ष के नीचे है, फिर भी हम ये दुःख क्यों सह रहे हैं?.....

हमारा निवास कल्पवृक्ष के नीचे है, फिर भी हम ये दुःख क्यों सह रहे हैं?.....
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यदि अति गहरी नींद में हमें स्वप्न आये कि किसी ने हमारी ह्त्या कर दी है व हम बहुत अधिक व्याकुल और दुखी हैं, तो उस दुःख से निवृत होने के लिए हमें उस स्वप्न से जागना ही होगा| जागने पर ही पता चलेगा कि वह अनुभव एक दुःस्वप्न था| वैसे ही इस संसार रूपी दुःखमय भवसागर को पार हम परमात्मा में जागृत होकर ही कर सकते हैं| परमात्मा में जागने पर पता चलेगा कि यह भवसागर एक दुःस्वप्न मात्र ही था|
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गुरु महाराज के चरण कमल कल्पवृक्ष हैं| सूक्ष्म देह में हमारा सहस्त्रार गुरु महाराज के चरण कमल हैं जहाँ हमें ध्यान करना चाहिए| उसमें स्थिति गुरुचरणों में आश्रय है| उसके नीचे आज्ञाचक्र में जीवात्मा का निवास है| उस कल्पवृक्ष के नीचे गुरु आश्रित रहकर भी यदि हम आध्यामिक दरिद्रता से उत्पन्न दुःख को सह रहे हैं तो वास्तव में बड़े अभागे हैं| वहाँ तो कोई दुःख हमें विचलित ही नहीं करना चाहिए| गीता में भगवान कहते हैं ...
"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः| यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ||६:२२||"
उसके लिए हमें भगवान की चेतना में निरंतर रहना पड़ेगा| भगवान तो सर्वत्र हैं| गीता में ही भगवान कहते हैं ...
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||६:३०||
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रामचरितमानस के बालकाण्ड में ब्रह्म के उस रूप का बड़ा सुन्दर वर्णन भगवान शिव, जगन्माता पार्वती जी को सुनाते हैं.....

"बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना | कर बिनु करम करइ बिधि नाना ||
आनन रहित सकल रस भोगी | बिनु बानी बकता बड़ जोगी ||
तन बिनु परस नयन बिनु देखा | ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा ||
असि सब भाँति अलौकिक करनी | महिमा जासु जाइ नहिं बरनी ||"
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उपरोक्त छंद में विभावना अलंकार का बड़ा सुन्दर प्रयोग है| यहाँ मैं लिखते लिखते भटक गया हूँ, अतः बापस मूल विषय पर आ रहा हूँ|
जब भी समय मिले, पूर्ण प्रेम, श्रद्धा और विश्वास से गुरु महाराज के चरण कमलों का ध्यान करें (यानी सहस्त्रार में ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करें)| आगे का सारा मार्गदर्शन भगवान स्वयं करते हैं, और अनंताकाश में सूक्ष्म जगत के दर्शन और उसमें प्रवेश भी भगवान की कृपा से ही होगा|
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आप सब महान आत्माओं को मेरा नमन ! आप सब परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप हैं| शिवमस्तु ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जून २०१८

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