हमारा निवास कल्पवृक्ष के नीचे है, फिर भी हम ये दुःख क्यों सह रहे हैं?.....
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यदि अति गहरी नींद में हमें स्वप्न आये कि किसी ने हमारी ह्त्या कर दी है व हम बहुत अधिक व्याकुल और दुखी हैं, तो उस दुःख से निवृत होने के लिए हमें उस स्वप्न से जागना ही होगा| जागने पर ही पता चलेगा कि वह अनुभव एक दुःस्वप्न था| वैसे ही इस संसार रूपी दुःखमय भवसागर को पार हम परमात्मा में जागृत होकर ही कर सकते हैं| परमात्मा में जागने पर पता चलेगा कि यह भवसागर एक दुःस्वप्न मात्र ही था|
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गुरु महाराज के चरण कमल कल्पवृक्ष हैं| सूक्ष्म देह में हमारा सहस्त्रार गुरु महाराज के चरण कमल हैं जहाँ हमें ध्यान करना चाहिए| उसमें स्थिति गुरुचरणों में आश्रय है| उसके नीचे आज्ञाचक्र में जीवात्मा का निवास है| उस कल्पवृक्ष के नीचे गुरु आश्रित रहकर भी यदि हम आध्यामिक दरिद्रता से उत्पन्न दुःख को सह रहे हैं तो वास्तव में बड़े अभागे हैं| वहाँ तो कोई दुःख हमें विचलित ही नहीं करना चाहिए| गीता में भगवान कहते हैं ...
"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः| यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ||६:२२||"
उसके लिए हमें भगवान की चेतना में निरंतर रहना पड़ेगा| भगवान तो सर्वत्र हैं| गीता में ही भगवान कहते हैं ...
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||६:३०||
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रामचरितमानस के बालकाण्ड में ब्रह्म के उस रूप का बड़ा सुन्दर वर्णन भगवान शिव, जगन्माता पार्वती जी को सुनाते हैं.....
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यदि अति गहरी नींद में हमें स्वप्न आये कि किसी ने हमारी ह्त्या कर दी है व हम बहुत अधिक व्याकुल और दुखी हैं, तो उस दुःख से निवृत होने के लिए हमें उस स्वप्न से जागना ही होगा| जागने पर ही पता चलेगा कि वह अनुभव एक दुःस्वप्न था| वैसे ही इस संसार रूपी दुःखमय भवसागर को पार हम परमात्मा में जागृत होकर ही कर सकते हैं| परमात्मा में जागने पर पता चलेगा कि यह भवसागर एक दुःस्वप्न मात्र ही था|
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गुरु महाराज के चरण कमल कल्पवृक्ष हैं| सूक्ष्म देह में हमारा सहस्त्रार गुरु महाराज के चरण कमल हैं जहाँ हमें ध्यान करना चाहिए| उसमें स्थिति गुरुचरणों में आश्रय है| उसके नीचे आज्ञाचक्र में जीवात्मा का निवास है| उस कल्पवृक्ष के नीचे गुरु आश्रित रहकर भी यदि हम आध्यामिक दरिद्रता से उत्पन्न दुःख को सह रहे हैं तो वास्तव में बड़े अभागे हैं| वहाँ तो कोई दुःख हमें विचलित ही नहीं करना चाहिए| गीता में भगवान कहते हैं ...
"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः| यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ||६:२२||"
उसके लिए हमें भगवान की चेतना में निरंतर रहना पड़ेगा| भगवान तो सर्वत्र हैं| गीता में ही भगवान कहते हैं ...
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||६:३०||
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रामचरितमानस के बालकाण्ड में ब्रह्म के उस रूप का बड़ा सुन्दर वर्णन भगवान शिव, जगन्माता पार्वती जी को सुनाते हैं.....
"बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना | कर बिनु करम करइ बिधि नाना ||
आनन रहित सकल रस भोगी | बिनु बानी बकता बड़ जोगी ||
तन बिनु परस नयन बिनु देखा | ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा ||
असि सब भाँति अलौकिक करनी | महिमा जासु जाइ नहिं बरनी ||"
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उपरोक्त छंद में विभावना अलंकार का बड़ा सुन्दर प्रयोग है| यहाँ मैं लिखते लिखते भटक गया हूँ, अतः बापस मूल विषय पर आ रहा हूँ|
जब भी समय मिले, पूर्ण प्रेम, श्रद्धा और विश्वास से गुरु महाराज के चरण कमलों का ध्यान करें (यानी सहस्त्रार में ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करें)| आगे का सारा मार्गदर्शन भगवान स्वयं करते हैं, और अनंताकाश में सूक्ष्म जगत के दर्शन और उसमें प्रवेश भी भगवान की कृपा से ही होगा|
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आप सब महान आत्माओं को मेरा नमन ! आप सब परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप हैं| शिवमस्तु ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जून २०१८
आनन रहित सकल रस भोगी | बिनु बानी बकता बड़ जोगी ||
तन बिनु परस नयन बिनु देखा | ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा ||
असि सब भाँति अलौकिक करनी | महिमा जासु जाइ नहिं बरनी ||"
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उपरोक्त छंद में विभावना अलंकार का बड़ा सुन्दर प्रयोग है| यहाँ मैं लिखते लिखते भटक गया हूँ, अतः बापस मूल विषय पर आ रहा हूँ|
जब भी समय मिले, पूर्ण प्रेम, श्रद्धा और विश्वास से गुरु महाराज के चरण कमलों का ध्यान करें (यानी सहस्त्रार में ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करें)| आगे का सारा मार्गदर्शन भगवान स्वयं करते हैं, और अनंताकाश में सूक्ष्म जगत के दर्शन और उसमें प्रवेश भी भगवान की कृपा से ही होगा|
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आप सब महान आत्माओं को मेरा नमन ! आप सब परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप हैं| शिवमस्तु ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जून २०१८
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