प्रश्न : भगवान को हम कैसे जानें ?
उत्तर : भगवान "है". उस "है" में स्थित हो कर ही हम भगवान को जान सकते हैं....
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ....
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः| अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः||१०:२||
अर्थात् मेरे प्रकट होनेको न देवता जानते हैं और न महर्षि क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियोंका आदि हूँ|
भगवान ही देवों, महर्षियों व हम सब के मूल कारण हैं| इसलिए हम भगवान के प्रभव को नहीं जानते|
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हम भगवान को कैसे जानें ? क्योंकि उनको जानने की शक्ति किसी में भी नहीं है|
गीता में भगवान कहते हैं .....
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः| तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता||१४:४||
अर्थात् हे अर्जुन, नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी मूर्तियाँ अर्थात शरीरधारी प्राणी उत्पन्न होते हैं, प्रकृति तो उन सबकी गर्भधारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ|
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अतः हम भगवान को कैसे जानें ? इसका उत्तर रामचरितमानस में है ....
"सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥"
उत्तर : भगवान "है". उस "है" में स्थित हो कर ही हम भगवान को जान सकते हैं....
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ....
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः| अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः||१०:२||
अर्थात् मेरे प्रकट होनेको न देवता जानते हैं और न महर्षि क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियोंका आदि हूँ|
भगवान ही देवों, महर्षियों व हम सब के मूल कारण हैं| इसलिए हम भगवान के प्रभव को नहीं जानते|
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हम भगवान को कैसे जानें ? क्योंकि उनको जानने की शक्ति किसी में भी नहीं है|
गीता में भगवान कहते हैं .....
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः| तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता||१४:४||
अर्थात् हे अर्जुन, नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी मूर्तियाँ अर्थात शरीरधारी प्राणी उत्पन्न होते हैं, प्रकृति तो उन सबकी गर्भधारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ|
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अतः हम भगवान को कैसे जानें ? इसका उत्तर रामचरितमानस में है ....
"सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥"
भावार्थ:-वही आपको जानता है, जिसे आप जना देते हैं और जानते ही वह आपका ही
स्वरूप बन जाता है। हे रघुनंदन! हे भक्तों के हृदय को शीतल करने वाले
चंदन! आपकी ही कृपा से भक्त आपको जान पाते है||
सार की बात :-- भगवान की कृपा से ही हम भगवान को जान सकते हैं, अन्यथा नहीं| और कोई मार्ग नहीं है| भगवान की कृपा भी उनके प्रति परम प्रेम से होती है|
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कल मैनें एक लेख में लिखा था .....
संसार में कोई भी चीज "है" के बिना नहीं मिलती| मिठाई है, फल है, खाना है, ठण्ड है, गर्मी है, सुख है, दुःख है, फलाँ फलाँ व्यक्ति है, ..... हर चीज में "है" है| वैसे ही भगवान भी "है", यहीं "है", इसी समय "है", सर्वदा "है", और सर्वत्र "है"| यही "ॐ तत्सत्" "है"| हमेशा याद रखो कि भगवान हर समय हमारे साथ "है"| मेरे पास इसका पक्का सबूत है .... वह मेरी आँखों से देख रहा है, मेरे पैरों से चल रहा है, मेरे हाथों से काम कर रहा है, मेरे हृदय में धड़क रहा है, और मेरे मन से सोच रहा है| मेरा अलग से कुछ होना एक भ्रम है| वास्तव में वह ही है| इस से बड़ा सबूत और दूसरा कोई नहीं हो सकता| हे प्रभु, आप ही आप रहो| यह मैं होने का भ्रम नष्ट हो जाए|
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अजपा-जप में हम अन्दर जाती सांस के साथ "सो" और बाहर आती सांस के साथ "हं" का मानसिक जप करते हैं| और भाव करते हैं कि यह अनंत समष्टि हम ही हैं| वह यही "है" की साधना है| साथ साथ भीतर बज रही प्रणव की ध्वनि यानि अनाहत नाद को भी सुनते रहें|
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आप सब को सादर सप्रेम नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जून २०१८
सार की बात :-- भगवान की कृपा से ही हम भगवान को जान सकते हैं, अन्यथा नहीं| और कोई मार्ग नहीं है| भगवान की कृपा भी उनके प्रति परम प्रेम से होती है|
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कल मैनें एक लेख में लिखा था .....
संसार में कोई भी चीज "है" के बिना नहीं मिलती| मिठाई है, फल है, खाना है, ठण्ड है, गर्मी है, सुख है, दुःख है, फलाँ फलाँ व्यक्ति है, ..... हर चीज में "है" है| वैसे ही भगवान भी "है", यहीं "है", इसी समय "है", सर्वदा "है", और सर्वत्र "है"| यही "ॐ तत्सत्" "है"| हमेशा याद रखो कि भगवान हर समय हमारे साथ "है"| मेरे पास इसका पक्का सबूत है .... वह मेरी आँखों से देख रहा है, मेरे पैरों से चल रहा है, मेरे हाथों से काम कर रहा है, मेरे हृदय में धड़क रहा है, और मेरे मन से सोच रहा है| मेरा अलग से कुछ होना एक भ्रम है| वास्तव में वह ही है| इस से बड़ा सबूत और दूसरा कोई नहीं हो सकता| हे प्रभु, आप ही आप रहो| यह मैं होने का भ्रम नष्ट हो जाए|
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अजपा-जप में हम अन्दर जाती सांस के साथ "सो" और बाहर आती सांस के साथ "हं" का मानसिक जप करते हैं| और भाव करते हैं कि यह अनंत समष्टि हम ही हैं| वह यही "है" की साधना है| साथ साथ भीतर बज रही प्रणव की ध्वनि यानि अनाहत नाद को भी सुनते रहें|
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आप सब को सादर सप्रेम नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जून २०१८
(१) आज रात्रि को सोने से पूर्व भगवान का गहनतम ध्यान करें, फिर निश्चिन्त होकर जगन्माता की गोद में सो जाएँ, उसी तरह जैसे एक शिशु अपनी माँ की गोद में सोता है|
ReplyDelete(२) कल प्रातःकाल उठते ही भगवान का गहनतम ध्यान करें|
नित्य कर्मों से निवृत होकर फिर भगवान का ध्यान करें|
(३) पूरे दिन भगवान को जीवन का केंद्रबिंदु बनाकर, यानि उन्हीं को कर्ता बनाकर निज विवेक के प्रकाश में अपने सारे सांसारिक दायित्व निभाएँ|
(४) प्रमाद करना अपनी मृत्यु को निमंत्रित करना है| प्रमाद ही मृत्यु है| ये शब्द मेरे नहीं, भगवान सनत्कुमार के हैं, जो देवर्षि नारद के गुरु हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!