वास्तविक प्रेम तो परमात्मा से ही होता है| परमात्मा का प्रेम प्राप्त
हो जाए तो और पाने योग्य कुछ भी नहीं है| यह ऊँची से ऊँची और बड़ी से बड़ी
उपलब्धि है| इससे बड़ा और कुछ भी नहीं है| प्रेम मिल गया तो सब कुछ मिल गया|
प्रेम में सिर्फ देना ही देना होता है, लेना कुछ भी नहीं| लेने की भावना
ही नष्ट हो जाती है| प्रेम उद्धार करता है क्योंकि प्रेम में कोई कामना या
अपेक्षा नहीं होती| प्रेम में कोई भेद भी नहीं होता| भक्ति सूत्रों में परम
प्रेम को ही भक्ति बताया गया है|
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परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी भी वस्तु या प्राणी से राग आसक्ति है, प्रेम नहीं| आसक्ति में सिर्फ लेना ही लेना यानि निरंतर माँग और अपेक्षा ही रहती है| आसक्ति पतन करने वाली होती है| आसक्ति अपने सुख के लिए होती है, जब कि परमात्मा से प्रेम में कोई शर्त नहीं होती|
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परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी भी वस्तु या प्राणी से राग आसक्ति है, प्रेम नहीं| आसक्ति में सिर्फ लेना ही लेना यानि निरंतर माँग और अपेक्षा ही रहती है| आसक्ति पतन करने वाली होती है| आसक्ति अपने सुख के लिए होती है, जब कि परमात्मा से प्रेम में कोई शर्त नहीं होती|
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जब भी अवसर मिले नारद भक्ति सूत्रों व शांडिल्य सूत्रों का अध्ययन करना चाहिए| ये हर धार्मिक पुस्तकों की दूकान पर मिल जाते हैं|
१५ जून २०१८
१५ जून २०१८
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