दिव्यप्रेम और शांति की अनुभूति का आनंद लीजिये .....
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एक बार हम ध्यान में बैठ जाएँ तो जब तक भरपूर दिव्य प्रेम और शान्ति की अनुभूति न हो तब तक उठना नहीं चाहिए| जप व ध्यान साधना के पश्चात मिलने वाली शान्ति और प्रेम की अनुभूति सबसे अधिक महत्वपूर्ण है| यह साधना का प्रसाद है| उस शान्ति और प्रेम का का भरपूर आनंद लीजिये| उसका आनंद लिए बिना उठ जाना ऐसे ही है जैसे आपने एक दूध की बाल्टी भरी और उसको ठोकर मार कर चल दिए| जब भी शान्ति और प्रेम की अनुभूति हो उसका पूरा आनंद लीजिये| कर्ताभाव से मुक्त रहें|
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परस्त्री और पर धन की कामना, दूसरो का अहित और अधर्म की बाते सोचना हमारे मन के पाप हैं, जिनका दंड भुगतना ही पड़ता है| ऐसे ही असत्य और अहंकार युक्त वचन, पर निंदा, हिंसा, अभक्ष्य भक्षण, और व्यभिचार हमारे शरीर के पाप हैं, जिनका भी दंड भुगतना ही पड़ता है|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जून २०१७
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एक बार हम ध्यान में बैठ जाएँ तो जब तक भरपूर दिव्य प्रेम और शान्ति की अनुभूति न हो तब तक उठना नहीं चाहिए| जप व ध्यान साधना के पश्चात मिलने वाली शान्ति और प्रेम की अनुभूति सबसे अधिक महत्वपूर्ण है| यह साधना का प्रसाद है| उस शान्ति और प्रेम का का भरपूर आनंद लीजिये| उसका आनंद लिए बिना उठ जाना ऐसे ही है जैसे आपने एक दूध की बाल्टी भरी और उसको ठोकर मार कर चल दिए| जब भी शान्ति और प्रेम की अनुभूति हो उसका पूरा आनंद लीजिये| कर्ताभाव से मुक्त रहें|
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परस्त्री और पर धन की कामना, दूसरो का अहित और अधर्म की बाते सोचना हमारे मन के पाप हैं, जिनका दंड भुगतना ही पड़ता है| ऐसे ही असत्य और अहंकार युक्त वचन, पर निंदा, हिंसा, अभक्ष्य भक्षण, और व्यभिचार हमारे शरीर के पाप हैं, जिनका भी दंड भुगतना ही पड़ता है|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जून २०१७
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