Tuesday, 26 June 2018

ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करने के लिए हम निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बनें .....

ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करने के लिए हम निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बनें .....
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गीता के निम्न श्लोक पर कुछ दिनों पूर्व बहुत विस्तार से चर्चा हुई थी .....
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन| निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्"||२:४५||
अब यहाँ हम उस पर कोई चर्चा नहीं कर रहे हैं| पर दूसरी पंक्ति के चार शब्दों के महत्त्व पर पुनश्चः विचार कर रहे हैं| दूसरी पंक्ति के ये चार शब्द हैं .....
(१) निर्द्वंद्व (२) नित्यसत्त्वस्थ (३) निर्योगक्षेम (४) आत्मवान |
भगवान अर्जुन को निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बनने को कहते हैं| भगवान यह आदेश सिर्फ महाभारत के अर्जुन को ही नहीं दे रहे, हम सब को दे रहे हैं|
मेरा आप सब से अनुरोध है कि पहले तो हम स्वाध्याय द्वारा इन शब्दों के अर्थ को समझें और फिर गहन मनन चिंतन और ध्यान द्वारा इन्हें निज जीवन में पूर्ण निष्ठा से अवतरित करें| हम निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बन कर ही ब्रह्मनिष्ठ हो सकेंगे|
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भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर ने इन शब्दों के बारे में लिखा है .....
(१) निर्द्वन्द्वः सुखदुःखहेतू सप्रतिपक्षौ पदार्थौ द्वन्द्वशब्दवाच्यौ ततः निर्गतः निर्द्वन्द्वो भव |
(२) नित्यसत्त्वस्थः सदा सत्त्वगुणाश्रितो भव |
(३) निर्योगक्षेमः अनुपात्तस्य उपादानं योगः उपात्तस्य रक्षणं क्षेमः
योगक्षेमप्रधानस्य श्रेयसि प्रवृत्तिर्दुष्करा इत्यतः निर्योगक्षेमो भव |
(४) आत्मवान् अप्रमत्तश्च भव |
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हम सब द्वन्द्वातीत, नित्यसत्वस्थ, निर्योगक्षेम व आत्मवान हों| इसके लिए गहन ध्यान साधना करनी होगी| योगक्षेम की चिन्ता यानि अप्राप्त पदार्थ की प्राप्ति की कामना व प्राप्त पदार्थ के संरक्षण की कामना भी छोड़नी होगी| इसके लिए सदा सतोगुण में स्थित होना होगा, और सभी द्वंद्वों से परे जाना होगा| यह भगवान की परम कृपा पर ही निर्भर है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जून २०१८

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