ब्रह्मभाव की प्राप्ति कैसे हो ? .....
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कल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर मैनें लिखा था ...."योग का लक्ष्य है ब्रह्मभाव की प्राप्ति| वह पूर्ण रूप से मेरा निजी अनुभव और व्यक्तिगत मत था| अब प्रश्न यह है कि ब्रह्मभाव की प्राप्ति कैसे हो? गीता में भगवान कहते हैं .....
"अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम् | विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते" ||१८:५३||
अर्थात् .... अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह को त्याग कर ममत्वभाव से रहित और शान्त पुरुष ब्रह्म प्राप्ति के योग्य बन जाता है|
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यह संकल्प शक्ति के द्वारा या बुद्धिबल से कभी संभव नहीं हो सकता| इसके लिए किसी ब्रह्मनिष्ठ, श्रौत्रीय, सिद्ध, योगी आचार्य महात्मा के सान्निध्य में गहन ध्यान साधना करनी होगी| परब्रह्म परमात्मा की कृपा के बिना यह संभव नहीं है|
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अतः इस विषय पर अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं है| जिस पर भगवान की कृपा होगी उसे भगवान स्वयं मार्गदर्शन प्रदान करेंगे| यह विषय ऐसा है जिसे गुरु महाराज अपने चेले को प्रत्यक्ष रूप से अपने सामने बैठाकर ही समझा सकते हैं| अपने आप यह समझ में नहीं आयेगा| वैराग्य, निरंतर अभ्यास और गुरुकृपा इसके लिए आवश्यक है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जून २०१८
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कल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर मैनें लिखा था ...."योग का लक्ष्य है ब्रह्मभाव की प्राप्ति| वह पूर्ण रूप से मेरा निजी अनुभव और व्यक्तिगत मत था| अब प्रश्न यह है कि ब्रह्मभाव की प्राप्ति कैसे हो? गीता में भगवान कहते हैं .....
"अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम् | विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते" ||१८:५३||
अर्थात् .... अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह को त्याग कर ममत्वभाव से रहित और शान्त पुरुष ब्रह्म प्राप्ति के योग्य बन जाता है|
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यह संकल्प शक्ति के द्वारा या बुद्धिबल से कभी संभव नहीं हो सकता| इसके लिए किसी ब्रह्मनिष्ठ, श्रौत्रीय, सिद्ध, योगी आचार्य महात्मा के सान्निध्य में गहन ध्यान साधना करनी होगी| परब्रह्म परमात्मा की कृपा के बिना यह संभव नहीं है|
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अतः इस विषय पर अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं है| जिस पर भगवान की कृपा होगी उसे भगवान स्वयं मार्गदर्शन प्रदान करेंगे| यह विषय ऐसा है जिसे गुरु महाराज अपने चेले को प्रत्यक्ष रूप से अपने सामने बैठाकर ही समझा सकते हैं| अपने आप यह समझ में नहीं आयेगा| वैराग्य, निरंतर अभ्यास और गुरुकृपा इसके लिए आवश्यक है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जून २०१८
"अहं" शब्द केवल प्रत्यगात्मा यानि परमात्मा के लिए ही प्रयुक्त होना चाहिए, न कि इस देह, बुद्धि और मन के लिए| हमारी चेतना सिर्फ सच्चिदानंद में ही स्थित रहे, ऐसा अनवरत प्रयास हो| हम इस मन, बुद्धि और शरीर को "अहं" मानते हैं, यही अहंकार है|
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