Tuesday 26 June 2018

योग का लक्ष्य है "ब्रह्मभाव की प्राप्ति". अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (२१ जून) पर शुभ कामनाएँ.......

योग का लक्ष्य है "ब्रह्मभाव की प्राप्ति".
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (२१ जून) पर शुभ कामनाएँ.......
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आध्यात्मिक रूप से योग है अपने अहंभाव का परमात्मा में पूर्ण विसर्जन| हठयोग तो उसकी तैयारी मात्र है क्योंकि साधना के लिए चाहिए एक स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन| तंत्र की भाषा में योग है कुण्डलिनी महाशक्ति का परमशिव से मिलन| योगदर्शन का चित्तवृत्तिनिरोध भी एक साधन मात्र है, उसके लिए भी एक स्वस्थ शरीर चाहिए| पर परमात्मा से परम प्रेम और सदाचार के बिना योग साधक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता क्योंकि योग का लक्ष्य है ... ब्रह्मभाव की प्राप्ति|
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गीता में भगवान कहते हैं ....
तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः | कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ||६:४६||
अर्थात् .... क्योंकि योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है और ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है, तथा कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है इसलिए हे अर्जुन तुम योगी बनो||
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ब्रह्मभाव की प्राप्ति किसे होती है? गीता में भगवान कहते हैं ....
विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः| ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः||१८:५२||
अर्थात् विविक्त सेवी (एकान्तप्रिय), लघ्वाशी (अल्पाहारी) जिसने अपने शरीर, वाणी और मन को संयत किया है| ध्यानयोग के अभ्यास में सदैव तत्पर तथा वैराग्य पर समाश्रित है| (ऐसा साधक ही ब्रह्मभाव पाने में समर्थ होता है)
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जो मैं कहना चाहता हूँ वह बात .....
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(१) भगवान से खूब प्रेम करो| जितना आवश्यक हो उतना ही पढ़ो, उससे अधिक नहीं, वह भी सिर्फ प्रेरणा प्राप्त करने के लिए ही, पर थोड़ा-बहुत गीता पाठ नित्य करो| गीता पाठ से पूर्व और पश्चात वैदिक शान्तिपाठ अवश्य करो|

(२) खूब ध्यान करो| ध्यान के लिए शक्तिशाली देह, दृढ़ मनोबल, प्राण ऊर्जा और आसन की दृढ़ता चाहिए | साथ साथ परमात्मा से परम प्रेम, और शुद्ध आचार-विचार भी चाहिए|
(३) सर्वदा निरंतर परमात्मा का चिंतन करो| हर समय भगवान को अपनी स्मृति में रखो | सबसे बड़ी आवश्यकता भगवान की भक्ति है जिसके बिना कोई योगी नहीं हो सकता| हर समय अपने विचारों के प्रति सचेत रहें और चिंतन सदा परमात्मा का ही रहे| मन में आने वाले दूषित विचारों पर यदि लगाम नहीं लगाई जाए तो सुषुम्ना में कुण्डलिनी का ऊर्ध्वगमन थम जाता है, सहस्त्रार में आनंद रूपी अमृत का प्रवाह बंद हो जाता है, सारे आध्यात्मिक अनुभव स्मृति से लुप्त होने लगते हैं, और उन्नति के स्थान पर अवनती आरम्भ हो जाती है|
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जिनके एक भृकुटी विलास मात्र से हज़ारों करोड़ ब्रह्मांडों की सृष्टि, स्थिति और विनाश हो सकता है, वे जब आपके ह्रदय में होंगे तो क्या संभव नहीं है|
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मैं उन सब महान योगियों को नमन करता हूँ जो दिन-रात निरंतर परमात्मा के चैतन्य में रहते हैं| उन सब भक्तों को भी नमन करता हूँ जिनके हृदय में प्रभु को पाने की प्रचंड अग्नि सदा प्रज्ज्वलित रहती है| उनकी चरण रज मेरे माथे की शोभा है| इस सृष्टि में जो कुछ भी शुभ है वह उन्हीं के पुण्यप्रताप से है|
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आप सब महान आत्माओं को नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ जून २०१८

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