Tuesday 26 June 2018

एक पुरानी स्मृति .....

एक पुरानी स्मृति .....
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३८ वर्ष पूर्व आज २३ जून ही के दिन सन १९८० में  तत्कालीन यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष संजय गांधी की हवाई दुर्घटना में रहस्यमय मृत्यु हुई थी| इस से भारतीय राजनीति के सारे समीकरण बदल गए थे| संजय गाँधी का इंदिरा गाँधी के स्थान पर प्रधान मंत्री बनाना उस समय तय था| आपातकाल में हुए अत्याचारों की जांच कर रहे शाह आयोग को संजय गाँधी ने काम ही नहीं करने दिया था| चौधरी चरण सिंह की सरकार को बिना पार्लियामेंट का मुंह देखे ही गिरा देने का श्रेय भी संजय गाँधी की कूटनीति को ही जाता है| आपातकाल के बाद दुबारा इंदिरा गाँधी को सत्ता में लाने का श्रेय भी उन को जाता है| वे भारत की राजनीति के सर्वाधिक दबंग व्यक्तित्व थे| सारा सरकारी प्रशासन उनकी जेब में रहता था| पूरे आपातकाल में भारत का पूरा प्रशासन उनके इशारों पर काम करता था| राज्यों के मुख्यमंत्री लोग उनके जूते हाथ में लिए लिए पीछे पीछे चलते थे| जयपुर में वे हाथी से नीचे उतरते तो वहाँ के मुख्यमंत्री उनको नीचे उतारने के लिए अपना कंधा उनके पैरों के नीचे लगा देते थे| भारत के राष्ट्रपति से लेकर सारे वरिष्ठ मंत्री उनके समक्ष झुकते थे| ऐसे व्यक्तित्व के असामयिक निधन ने पूरे भारत को स्तब्ध कर दिया था|
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तरह तरह के समाचार उन दिनों आये थे, तरह तरह की अफवाहें उडी थीं| कुछ लोगों ने कहा कि वायुयान में विस्फोट हुआ था जो उन्होंने देखा| कुछ लोगों ने कहा कि वायुयान का तेल समाप्त हो गया था| आधिकारिक रूप से आज तक किसी को नहीं पता कि उस दिन वास्तव में क्या हुआ था| कई ऐसी भी बातें उड़ी थीं जो लिखने योग्य नहीं हैं|
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मैं उस समय भारत में नहीं था| कुछ दिनों के लिए उत्तरी कोरिया गया हुआ था जहाँ न तो कोई विदेशी रेडियो प्रसारण सुनता था और न कोई अंग्रेजी का अखबार छपता था| वहाँ काम करने वाले कुछ रूसी लोगों से मुझे यह समाचार मिला जिन्होंने एक रूसी भाषा में छपे अखवार में दुर्घटना का समाचार दिखाया था| उसके बाद मैं कुछ महीनों तक विदेशों में ही रहा| उस घटना के कई महिनों बाद मैं अपने परिवार से मिलने दिल्ली से बीकानेर ट्रेन से जा रहा था| प्रथम श्रेणी के उस डिब्बे में संयोग से मेरे सामने वाली दो बर्थों पर श्री राजेश पायलट और उनकी पत्नी भी बीकानेर जा रहे थे| पूरी रात हमारी बातचीत होती रही| उनसे हुई बातचीत से भी कुछ स्पष्ट नहीं हुआ कि संजय गाँधी के विमान की दुर्घटना कैसे हुई| लगता है यह रहस्य एक रहस्य ही रहेगा|
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कृपा शंकर
२३ जून २०१८

3 comments:

  1. संजय गाँधी की २३ जून को पुण्य तिथि थी| १९७५ में लगे आपात्काल में प्रधानमंत्री का पद चाहे इंदिरा गाँधी के पास रहा हो, पर देश के प्रशासन पर चलती संजय गाँधी की ही थी| संजय गाँधी की मर्जी के बिना देश में एक पत्ता भी नहीं हिलता था| सारे मंत्री और सारे सरकारी अधिकारी संजय गाँधी के सामने डर से थरथर काँपते थे| सारे देश में उनका आतंक था| आपात्काल के पश्चात बनी जनता दल की मोरारजी भाई देसाई की सरकार को गिराने में भी संजय गाँधी की कुशाग्रता या कुटिलता को ही श्रेय जाता है| यह एक विवाद का विषय है कि वे वायुयान दुर्घटना में मरे या किसी षडयंत्र में (उनके बारे में अनगिनत लेख लिखे गए थे जो गूगल पर ढूँढने से मिल जायेंगे)| आज संजय गाँधी का नाम लेने वाला कोई नहीं है| उनके बारे में कहीं कोई समाचार नहीं है| पता नहीं उनके परिवार वाले भी उनकी समाधि पर पुष्पांजली देने जाते हैं या नहीं| सार की बात यह है कि कल तक जो हीरो थे, वे आज जीरो हैं| अतः हीरो बनने में कोई सार नहीं है| जीरो बनकर रहना ही अच्छा है|

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  2. उस समय देश के राष्ट्रपति श्री फकरुद्दीन अली अहमद थे| संजय गाँधी उनको "फखरू" बोल कर संबोधित करते थे| तत्कालीन राष्ट्रपति भी उनके आगे हाथ जोड़े खड़े रहते थे| कांग्रेस के तत्कालीन वरिष्ठतम मंत्री श्री जगजीवन राम को भी वे "जगरु" बोल कर संबोधित करते थे| मौक़ा मिलते ही श्री जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़ दी थी|

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