Tuesday 26 June 2018

जब भी याद आये तब भगवान का ध्यान करो .....

जब भी भगवान कि गहरी स्मृति आये और भगवान पर ध्यान करने कि प्रेरणा मिले तब समझ लेना कि प्रत्यक्ष भगवान वासुदेव वहीँ खड़े होकर आदेश दे रहे हैं| उनके आदेश का पालन करना हमारा परम धर्म है| सारी शुभ प्रेरणाएँ भगवान के द्वारा ही मिलती हैं| जब भी मन में उत्साह जागृत हो उसी समय शुभ कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिये| भगवान ने जो आदेश दे दिया उसका पालन करने में किसी भी तरह के देश-काल शौच-अशौच का विचार करने की आवश्यकता नहीं है| शुभ कार्य करने का उत्साह भगवान् की विभूति ही है| निरंतर भगवान का ध्यान करो| कौन क्या कहता है और क्या नहीं कहता है इसका कोई महत्व नहीं है| हम भगवान कि दृष्टी में क्या हैं ....महत्व सिर्फ इसी का है|
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परमात्मा की परोक्षता और स्वयं की परिछिन्नता को मिटाने का एक ही उपाय है ... परमात्मा का ध्यान| परम प्रेम और ध्यान से पराभक्ति प्राप्त होती है, जिसकी परिणिति ज्ञाननिष्ठालक्षणा भक्ति है, जिससे ऊँचा अन्य कुछ है ही नहीं| यहाँ तक पहुँचते पहुँचते सब कुछ निवृत हो जाता है| फिर त्याग करने को कुछ अवशिष्ट ही नहीं रहता| यह धर्म और अधर्म से परे की स्थिति है| ज्ञाननिष्ठालक्षणा भक्ति में भक्त और भगवान में कोई भेद नहीं रहता|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जून २०१८

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