जब भी भगवान कि गहरी स्मृति आये और भगवान पर ध्यान करने कि प्रेरणा मिले तब
समझ लेना कि प्रत्यक्ष भगवान वासुदेव वहीँ खड़े होकर आदेश दे रहे हैं| उनके
आदेश का पालन करना हमारा परम धर्म है| सारी शुभ प्रेरणाएँ भगवान के द्वारा
ही मिलती हैं| जब भी मन में उत्साह जागृत हो उसी समय शुभ कार्य प्रारम्भ
कर देना चाहिये| भगवान ने जो आदेश दे दिया उसका पालन करने में किसी भी तरह
के देश-काल शौच-अशौच का विचार करने की आवश्यकता नहीं है| शुभ कार्य करने का
उत्साह भगवान् की विभूति ही है| निरंतर भगवान का ध्यान
करो| कौन क्या कहता है और क्या नहीं कहता है इसका कोई महत्व नहीं है| हम
भगवान कि दृष्टी में क्या हैं ....महत्व सिर्फ इसी का है|
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परमात्मा की परोक्षता और स्वयं की परिछिन्नता को मिटाने का एक ही उपाय है ... परमात्मा का ध्यान| परम प्रेम और ध्यान से पराभक्ति प्राप्त होती है, जिसकी परिणिति ज्ञाननिष्ठालक्षणा भक्ति है, जिससे ऊँचा अन्य कुछ है ही नहीं| यहाँ तक पहुँचते पहुँचते सब कुछ निवृत हो जाता है| फिर त्याग करने को कुछ अवशिष्ट ही नहीं रहता| यह धर्म और अधर्म से परे की स्थिति है| ज्ञाननिष्ठालक्षणा भक्ति में भक्त और भगवान में कोई भेद नहीं रहता|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जून २०१८
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परमात्मा की परोक्षता और स्वयं की परिछिन्नता को मिटाने का एक ही उपाय है ... परमात्मा का ध्यान| परम प्रेम और ध्यान से पराभक्ति प्राप्त होती है, जिसकी परिणिति ज्ञाननिष्ठालक्षणा भक्ति है, जिससे ऊँचा अन्य कुछ है ही नहीं| यहाँ तक पहुँचते पहुँचते सब कुछ निवृत हो जाता है| फिर त्याग करने को कुछ अवशिष्ट ही नहीं रहता| यह धर्म और अधर्म से परे की स्थिति है| ज्ञाननिष्ठालक्षणा भक्ति में भक्त और भगवान में कोई भेद नहीं रहता|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जून २०१८
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