माता पिता दोनों ही प्रथम परमात्मा हैं| किसी भी परिस्थिति में उनका
अपमान नहीं होना चाहिए| उनका सम्मान परमात्मा का सम्मान है| यदि उनका आचरण
धर्म-विरुद्ध और सन्मार्ग में बाधक है तो भी वे पूजनीय हैं| ऐसी परिस्थिति
में हम उनकी बात मानने को बाध्य नहीं हैं, पर उन्हें अपमानित करने का
अधिकार हमें नहीं है| उनका पूर्ण सम्मान करना हमारा परम धर्म है| श्रुति
कहती है ..... "मातृदेवो भव, पितृदेवो भव|" उनके अपमान से भयंकर पितृदोष
लगता है| पितृदोष जिन को होता है, या तो
उनका वंश नहीं चलता या उनके वंश में अच्छी आत्माएं जन्म नहीं लेती| पितृदोष
से घर में सुख शांति नहीं होती और कलह बनी रहती है| आज के समय अधिकांश
परिवार पितृदोष से दु:खी हैं| वे प्रत्यक्ष रूप से आपके सम्मुख हैं तो
प्रत्यक्ष रूप से, और नहीं भी हैं तो मानसिक रूप से उन देवी-देवता के श्री
चरणों में प्रणाम करना हमारा धर्म है|
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(१) "ॐ ऐं" .... मानसिक रूप से जपते हुए इस मन्त्र से अपने पिता को प्रणाम करना चाहिए| यह मन्त्र स्वतः चिन्मय है| "ॐ" तो प्रत्यक्ष परमात्मा का वाचक है| "ऐं" पूर्ण ब्रह्मविद्या स्वरुप है| यह वाग्भव बीज मन्त्र है महासरस्वती और गुरु को प्रणाम करने का| गुरु रूप में पिता को प्रणाम करने से इसका अर्थ होता है .... हे पितृदेव मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|
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(१) "ॐ ऐं" .... मानसिक रूप से जपते हुए इस मन्त्र से अपने पिता को प्रणाम करना चाहिए| यह मन्त्र स्वतः चिन्मय है| "ॐ" तो प्रत्यक्ष परमात्मा का वाचक है| "ऐं" पूर्ण ब्रह्मविद्या स्वरुप है| यह वाग्भव बीज मन्त्र है महासरस्वती और गुरु को प्रणाम करने का| गुरु रूप में पिता को प्रणाम करने से इसका अर्थ होता है .... हे पितृदेव मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|
(२) "ॐ ह्रीं" .... मानसिक रूप से जपते हुए इस मन्त्र से अपनी माता को
प्रणाम करना चाहिए यह माया, महालक्ष्मी और माँ भुवनेश्वरी का बीज मन्त्र है
जिनका पूर्ण प्रकाश स्नेहमयी माता के चरणों में प्रकट होता है| प्रथम गुरु
और जगन्माता के रूप में अपनी माता को प्रणाम करने का अर्थ है ... हे माता
मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जून २०१३
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जून २०१३
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