क्रीमिया प्रायद्वीप ---
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करीम नाम के एक तुर्क योद्धा के नाम पर क्रीमिया प्रायदीप का नाम पड़ा है। सामरिक दृष्टि से यहाँ का बंदरगाह सेवास्तोपोल बहुत अधिक महत्वपूर्ण स्थान है। सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) के समय क्रीमिया में तातार जाति के मुसलमान रहते थे। १८ वी सदी में क्रीमिया पर रूस ने अधिकार कर लिया। इंग्लैंड और फ्रांस ने भी क्रीमिया पर अधिकार करने के लिए एक युद्ध लड़ा था जिसमें उन्हें कुछ भी नहीं मिला। सोवियत संघ बनने के बाद वहाँ के तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन ने क्रीमिया के सब तातार मुसलमानों को वहाँ से हटा कर रूस की मुख्य भूमि में बसा दिया, और उस क्षेत्र को तातारिस्तान गणराज्य का नाम दिया, जिसकी राजधानी कजान है। यह रूस का बहुत सम्पन्न क्षेत्र है। कई तातार मुसलमान परिवारों से मेरा अच्छा परिचय और मित्रता थी। उनका अब तुर्की से कोई संबंध नहीं रहा है। लगभग सब ने रूसी भाषा और संस्कृति अपना ली है।
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जोसेफ स्टालिन ने क्रीमिया में रूसी नस्ल के लोगों को बसा दिया। बाद में अन्य नस्लों के लोगों को भी वहाँ आने की अनुमति मिल गई और कई सौ परिवार तातार मुसलमानों के भी बापस वहाँ आ गए। जोसेफ़ स्टालिन के बाद निकिता ख्रुश्चेव सत्ता में आए तो उन्होने सन १९५४ में यूक्रेन गणराज्य को भेंट में क्रीमिया प्रायदीप दे दिया। तब सोवियत संघ था अतः किसी भी तरह के विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं था।
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२६ दिसंबर १९९१ को सोवियत संघ का विघटन हो गया और रूस व यूक्रेन अलग-अलग देश हो गए। २६ फरवरी २०१४ को हथियारबंद रूस समर्थकों ने यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप में संसद और सरकारी इमारतों पर अधिकार कर लिया। ६ मार्च २०१४ को क्रीमिया की संसद ने रूसी संघ का हिस्सा बनने के पक्ष में मतदान किया। जनमत संग्रह के परिणामों को आधार बनाकर १८ मार्च २०१४ को क्रीमिया को रूसी फेडरेशन में मिलाने के प्रस्ताव पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हस्ताक्षर कर दिए। इसके साथ ही क्रीमिया रूसी फेडरेशन का हिस्सा बन गया। रूस ने वहाँ अपनी सेना भेज दी और अपनी स्थिति बहुत मज़बूत कर ली। रूस का तर्क यह था कि वहाँ रूसी मूल के लोग ही रहते हैं, और १८वीं शताब्दी से ही वह रूस का भाग रहा है। यूक्रेन के पक्ष में लगभग पाँच या छह प्रतिशत मत पड़े थे।
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दूसरा विवाद अजोव सागर में प्रवेश को लेकर "कर्च जलडमरूमध्य" पर था। उस समय यह बहुत छोटा सा मामला था जो आराम से बातचीत द्वारा सुलझाया जा सकता था। लेकिन अमेरिकी दखल ने मामले को बहुत अधिक जटिल बना दिया, जिसकी परिणिती युद्ध में हुई है। रूस ने ८ साल की देरी कर दी। यह युद्ध उसे २०१४ में ही आरंभ कर के यूक्रेन के आधीन रूसी बहुल क्षेत्रों को यूक्रेन से छीन लेना चाहिए था। तत्कालीन दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियाँ मैं अपने पूर्व लेखों में लिख चुका हूँ। उन्हें दुबारा नहीं लिखना चाहता। मेरा समर्थन रूस को है क्योंकि रूस का पक्ष न्यायोचित है।
कृपा शंकर
९ अक्टूबर २०२२
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