(एक धर्म-विरोधी विचारधारा पर एक लघु खंडनात्मक चर्चा)
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रूस की अक्टूबर क्रांति क्या सचमुच एक महान क्रांति थी या भयंकर छलावा थी?........
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7 नवंबर 1917 (रूसी कैलेंडर 25 अक्टूबर) को हुई बोल्शेविक क्रांति पिछले एक सौ वर्षों में हुई विश्व की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी जिसे महान अक्टूबर क्रांति का नाम दिया गया है| इसका प्रभाव इतना व्यापक था कि रूस में जारशाही का अंत हुआ और मार्क्सवादी सता स्थापित हुई व सोवियत संघ का जन्म हुआ|
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद योरोप के अनेक देशों में रूसी प्रभाव से साम्यवादी शासन स्थापित हुए| चीन में माओत्सेतुंग के नेतृत्व में साम्यवादी सता में आये| उत्तरी कोरिया और उत्तरी वियतनाम में साम्यवादी सरकारें बनीं| क्यूबा में साम्यवादियों ने सरकार बनाई|
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पर मेरे दृष्टिकोण से यह तथाकथित क्रांति एक छलावा थी| मार्क्सवादी साम्यवाद ने विश्व की चेतना को नकारात्मक रूप से बहुत अधिक प्रभावित किया | यह मार्क्सवादी साम्यवाद एक छलावा था जिसने मेरे जैसे लाखों लोगों को भ्रमित किया| मुझे इसके छलावे से निकलने में बहुत समय लगा| बाद में मेरे जैसे और भी अनेक लोग इस अति भौतिक व धर्म-विरोधी विचारधारा के भ्रमजाल से मुक्त हुए|
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विश्व में जहाँ भी साम्यवादी सत्ताएँ स्थापित हुईं वे अपने पीछे एक विनाशलीला छोड़ गईं| इनके द्वारा अपने ही करोड़ों लोगों का भयानक नरसंहार हुआ और मानवीय चेतना का अत्यधिक ह्रास हुआ| अब तो विश्व इसके प्रभाव से मुक्त हो चुका है| सिर्फ उत्तरी कोरिया में ही एक निरंकुश तानाशाही द्वारा यह व्यवस्था बची हुई है| भारत में भी मार्क्सवाद के बहुत अधिक अनुयायी हैं|
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यह एक धर्म-विरोधी व्यवस्था थी इसलिए मैं यह लेख लिख रहा हूँ|
यह क्रांति कोई सर्वहारा की क्रांति नहीं थी| यह एक सैनिक विद्रोह था जो वोल्गा नदी में खड़े औरोरा नामक युद्धपोत से आरम्भ हुआ और सारी रुसी सेना में फ़ैल गया था| इस विद्रोह का कोई नेता नहीं था अतः फ़्रांस में निर्वासित जीवन जी रहे व्लादिमीर इलीइच लेनिन ने जर्मनी की सहायता से रूस में आकर इस विद्रोह का नेतृत्व संभाल लिया और इसे सर्वहारा की मार्क्सवादी क्रांति का रूप दे दिया|
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इस सैनिक विद्रोह की पृष्ठभूमि में जाने के लिए तत्कालीन रूस की भौगोलिक, राजनितिक, सैनिक व आर्थिक स्थिति को समझना होगा| रूस में भूमि तो बहुत है पर उपजाऊ भूमि बहुत कम है| रूस सदा से एक विस्तारवादी देश रहा है| इसने फैलते फैलते पूरा साइबेरिया, अलास्का और मंचूरिया अपने अधिकार में ले लिया था| उसका अगला लक्ष्य कोरिया को अपने अधिकार में लेने का था| रूस की इस योजना से जापान में बड़ी उत्तेजना और आक्रोश फ़ैल गया क्योंकी जापान का बाहरी विश्व से सम्बन्ध कोरिया के माध्यम से ही था| अतः जापान ने युद्ध की तैयारियाँ कर के अपनी सेनाएँ रूस के सुदूर पूर्व और मंचूरिया में उतार दीं| रूस और जापान में युद्ध हुआ जिसमें रूस पराजित हुआ| जापान ने पूरा मंचूरिया उसकी राजधानी पोर्ट आर्थर सहित रूस से छीन लिया| जार ने अपनी नौसेना को युद्ध के लिए भेजा जो बाल्टिक सागर से हजारों मील की दूरी तय कर अफ्रीका का चक्कर लगाकर जब तक मेडागास्कर पहुंची, मंचुरिया का पतन हो गया था| फिर भी रुसी नौसेना सुंडा जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर होती हुई सुदूर पूर्व में व्लादिवोस्टोक की ओर रवाना हुईं| जब रुसी नौसेना त्शुशीमा जलडमरूमध्य को पार कर रही थी तब जापान की नौसेना ने अचानक आक्रमण कर के पुरे रूसी नौसेनिक बेड़े को डुबा दिया, जिसमें से कोई भी जहाज नहीं बचा और हज़ारों रुसी सैनिक डूब कर मर गए| यह एक ऐसी घटना थी जिससे रूसी सेना में और रूस में एक घोर निराशा फ़ैल गयी|
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बाद में हुए प्रथम विश्व युद्ध में रुसी सेना की बहुत दुर्गति हुई| रुसी सेना के पास न तो अच्छे हथियार थे और न अच्छे वस्त्र और न पर्याप्त खाद्य सामग्री| जितने सैनिक युद्ध में मरे उससे अधिक सैनिक तो भूख और ठण्ड से मर गए| अतः सेना में अत्यधिक आक्रोश था अपने शासक जार के प्रति| रूस में भी खाद्य सामग्री की बहुत अधिक कमी थी और पेट भर के खाना सभी को नहीं मिलता था| अतः वहां की प्रजा भी अपने शासक के प्रति आक्रोशित थी|
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उपरोक्त परिस्थितियों में रूस में तथाकथित महान अक्टूबर क्रांति हुई| जो सैनिक इसके पक्ष में थे वे बहु संख्या में थे अतः "बोल्शेविक" कहलाये और जो वहां के शासक के पक्ष में अल्प संख्या में थे वे "मेन्शेविक" कहलाये| उनमें युद्ध हुआ और बोल्शेविक जीते अतः यह क्रांति बोल्शेविक क्रांति कहलाई|
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फिर रूस में क्या हुआ और कैसे साम्यवाद अन्य देशों में फैला यह तो सब को पता है|
चीन में साम्यवाद रूस की सैनिक सहायता से आया| माओ के long march में स्टालिन के भेजे हुए रुसी सेना के tanks भी थे जिनके कारण ही माओ सत्ता में आ पाए|
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विश्व की चेतना को इस प्रभाव से निकलना ही था अतः आने वाले समय के लिए यह भी होना आवश्यक था| मार्क्सवादी सत्ताओं ने धर्म की जड़ों को उखाड़ कर फैंक दिया था| पर अब वहाँ धर्म पुनर्स्थापित हो रहा है|
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साम्यवाद का मूल स्रोत ब्रिटेन है| जैसे भारतीय सभ्यता को नष्ट करने के षडयंत्र ब्रिटेन से आरम्भ हुए, वैसे ही रूस को नष्ट करने के भी| जर्मनी से उपद्रवी मार्क्स को ब्रिटेन बुलाया गया| उसके साहित्य को ब्रिटेन में तो नहीं पढ़ाया गया पर सरकारी खर्च से उसके साहित्य को छाप कर पूरे विश्व में फैलाया गया| भारत में साम्यवादी विचारधारा को ब्रिटेन से लाने का श्री ऍम.ऐन. रॉय को है| दुनिया के सारे उपद्रवियों को ब्रिटेन में शरण मिल जाती है|
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रूस की अक्टूबर क्रांति क्या सचमुच एक महान क्रांति थी या भयंकर छलावा थी?........
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7 नवंबर 1917 (रूसी कैलेंडर 25 अक्टूबर) को हुई बोल्शेविक क्रांति पिछले एक सौ वर्षों में हुई विश्व की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी जिसे महान अक्टूबर क्रांति का नाम दिया गया है| इसका प्रभाव इतना व्यापक था कि रूस में जारशाही का अंत हुआ और मार्क्सवादी सता स्थापित हुई व सोवियत संघ का जन्म हुआ|
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद योरोप के अनेक देशों में रूसी प्रभाव से साम्यवादी शासन स्थापित हुए| चीन में माओत्सेतुंग के नेतृत्व में साम्यवादी सता में आये| उत्तरी कोरिया और उत्तरी वियतनाम में साम्यवादी सरकारें बनीं| क्यूबा में साम्यवादियों ने सरकार बनाई|
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पर मेरे दृष्टिकोण से यह तथाकथित क्रांति एक छलावा थी| मार्क्सवादी साम्यवाद ने विश्व की चेतना को नकारात्मक रूप से बहुत अधिक प्रभावित किया | यह मार्क्सवादी साम्यवाद एक छलावा था जिसने मेरे जैसे लाखों लोगों को भ्रमित किया| मुझे इसके छलावे से निकलने में बहुत समय लगा| बाद में मेरे जैसे और भी अनेक लोग इस अति भौतिक व धर्म-विरोधी विचारधारा के भ्रमजाल से मुक्त हुए|
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विश्व में जहाँ भी साम्यवादी सत्ताएँ स्थापित हुईं वे अपने पीछे एक विनाशलीला छोड़ गईं| इनके द्वारा अपने ही करोड़ों लोगों का भयानक नरसंहार हुआ और मानवीय चेतना का अत्यधिक ह्रास हुआ| अब तो विश्व इसके प्रभाव से मुक्त हो चुका है| सिर्फ उत्तरी कोरिया में ही एक निरंकुश तानाशाही द्वारा यह व्यवस्था बची हुई है| भारत में भी मार्क्सवाद के बहुत अधिक अनुयायी हैं|
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यह एक धर्म-विरोधी व्यवस्था थी इसलिए मैं यह लेख लिख रहा हूँ|
यह क्रांति कोई सर्वहारा की क्रांति नहीं थी| यह एक सैनिक विद्रोह था जो वोल्गा नदी में खड़े औरोरा नामक युद्धपोत से आरम्भ हुआ और सारी रुसी सेना में फ़ैल गया था| इस विद्रोह का कोई नेता नहीं था अतः फ़्रांस में निर्वासित जीवन जी रहे व्लादिमीर इलीइच लेनिन ने जर्मनी की सहायता से रूस में आकर इस विद्रोह का नेतृत्व संभाल लिया और इसे सर्वहारा की मार्क्सवादी क्रांति का रूप दे दिया|
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इस सैनिक विद्रोह की पृष्ठभूमि में जाने के लिए तत्कालीन रूस की भौगोलिक, राजनितिक, सैनिक व आर्थिक स्थिति को समझना होगा| रूस में भूमि तो बहुत है पर उपजाऊ भूमि बहुत कम है| रूस सदा से एक विस्तारवादी देश रहा है| इसने फैलते फैलते पूरा साइबेरिया, अलास्का और मंचूरिया अपने अधिकार में ले लिया था| उसका अगला लक्ष्य कोरिया को अपने अधिकार में लेने का था| रूस की इस योजना से जापान में बड़ी उत्तेजना और आक्रोश फ़ैल गया क्योंकी जापान का बाहरी विश्व से सम्बन्ध कोरिया के माध्यम से ही था| अतः जापान ने युद्ध की तैयारियाँ कर के अपनी सेनाएँ रूस के सुदूर पूर्व और मंचूरिया में उतार दीं| रूस और जापान में युद्ध हुआ जिसमें रूस पराजित हुआ| जापान ने पूरा मंचूरिया उसकी राजधानी पोर्ट आर्थर सहित रूस से छीन लिया| जार ने अपनी नौसेना को युद्ध के लिए भेजा जो बाल्टिक सागर से हजारों मील की दूरी तय कर अफ्रीका का चक्कर लगाकर जब तक मेडागास्कर पहुंची, मंचुरिया का पतन हो गया था| फिर भी रुसी नौसेना सुंडा जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर होती हुई सुदूर पूर्व में व्लादिवोस्टोक की ओर रवाना हुईं| जब रुसी नौसेना त्शुशीमा जलडमरूमध्य को पार कर रही थी तब जापान की नौसेना ने अचानक आक्रमण कर के पुरे रूसी नौसेनिक बेड़े को डुबा दिया, जिसमें से कोई भी जहाज नहीं बचा और हज़ारों रुसी सैनिक डूब कर मर गए| यह एक ऐसी घटना थी जिससे रूसी सेना में और रूस में एक घोर निराशा फ़ैल गयी|
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बाद में हुए प्रथम विश्व युद्ध में रुसी सेना की बहुत दुर्गति हुई| रुसी सेना के पास न तो अच्छे हथियार थे और न अच्छे वस्त्र और न पर्याप्त खाद्य सामग्री| जितने सैनिक युद्ध में मरे उससे अधिक सैनिक तो भूख और ठण्ड से मर गए| अतः सेना में अत्यधिक आक्रोश था अपने शासक जार के प्रति| रूस में भी खाद्य सामग्री की बहुत अधिक कमी थी और पेट भर के खाना सभी को नहीं मिलता था| अतः वहां की प्रजा भी अपने शासक के प्रति आक्रोशित थी|
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उपरोक्त परिस्थितियों में रूस में तथाकथित महान अक्टूबर क्रांति हुई| जो सैनिक इसके पक्ष में थे वे बहु संख्या में थे अतः "बोल्शेविक" कहलाये और जो वहां के शासक के पक्ष में अल्प संख्या में थे वे "मेन्शेविक" कहलाये| उनमें युद्ध हुआ और बोल्शेविक जीते अतः यह क्रांति बोल्शेविक क्रांति कहलाई|
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फिर रूस में क्या हुआ और कैसे साम्यवाद अन्य देशों में फैला यह तो सब को पता है|
चीन में साम्यवाद रूस की सैनिक सहायता से आया| माओ के long march में स्टालिन के भेजे हुए रुसी सेना के tanks भी थे जिनके कारण ही माओ सत्ता में आ पाए|
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विश्व की चेतना को इस प्रभाव से निकलना ही था अतः आने वाले समय के लिए यह भी होना आवश्यक था| मार्क्सवादी सत्ताओं ने धर्म की जड़ों को उखाड़ कर फैंक दिया था| पर अब वहाँ धर्म पुनर्स्थापित हो रहा है|
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साम्यवाद का मूल स्रोत ब्रिटेन है| जैसे भारतीय सभ्यता को नष्ट करने के षडयंत्र ब्रिटेन से आरम्भ हुए, वैसे ही रूस को नष्ट करने के भी| जर्मनी से उपद्रवी मार्क्स को ब्रिटेन बुलाया गया| उसके साहित्य को ब्रिटेन में तो नहीं पढ़ाया गया पर सरकारी खर्च से उसके साहित्य को छाप कर पूरे विश्व में फैलाया गया| भारत में साम्यवादी विचारधारा को ब्रिटेन से लाने का श्री ऍम.ऐन. रॉय को है| दुनिया के सारे उपद्रवियों को ब्रिटेन में शरण मिल जाती है|
अब तो रूस में सनातन धर्म जिस गति से फ़ैल रहा है उससे लगता है रूस का भावी धर्म सनातन धर्म ही होगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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