Saturday, 29 October 2016

भारतवर्ष में धर्म और संस्कृति के ह्रास और पतन से मैं बहुत व्यथित हूँ .....

भारतवर्ष में धर्म और संस्कृति के ह्रास और पतन से मैं बहुत व्यथित हूँ| राष्ट्र की समस्याओं और समाधान का भास निज चेतना में है|
मेरी भावनाएँ बहुत आहत हैं| पर समाधान क्या है ???
पूरी सृष्टि परमात्मा के संकल्प से बनी है| उस परमात्मा से जुड़कर, उसके संकल्प से जुड़कर ही कोई समाधान निकल सकता हैं|
इसके लिए समर्पण और साधना करनी होगी|
किसी भी विषयपर बिना उस विषय के प्रत्यक्ष अनुभव के, किसी भी तरह के बौद्धिक निर्णय पर पहुँचना -- अहंकार का लक्षण है जो एक अज्ञानता ही है| ऐसा नहीं होना चाहिए|
भगवान भुवन भास्कर उदित होने पर कभी नहीं कहते की मैं आ गया हूँ| उनकी उपस्थिति मात्र से सभी प्राणी उठ जाते हैं| उनकी उपस्थिति में कहीं भी कोई अन्धकार नहीं रहता|
उनकी तरह ही निज जीवन को ज्योतिर्मय बनाना होगा तभी अन्धकार और अज्ञानता को दूर कर समाज और राष्ट्र को आलोकित किया जा सकता है|
सिर्फ बुद्धि से आप किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच सकते| किसी भी मान्यता के पीछे निज अनुभव भी होना चाहिए|
व्यक्तिगत जीवन की व्यस्तताओं के कारण कुछ समय के लिए आध्यात्मिक लेखों की प्रस्तुति पर अस्थायी विराम लगा रहा हूँ| जब भी प्रभु से प्रेरणा मिलेगी पुनश्चः उपस्थित हो जाऊँगा|
आपके जीवन में शुभ ही शुभ हो| आप सब मेरी ही निजात्मा हैं| आप सब के हृदयस्थ प्रभु को प्रणाम|
ॐ नमो नारायण ! जय जय श्री सीताराम !

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