भारतवर्ष में धर्म और संस्कृति के ह्रास और पतन से मैं बहुत व्यथित हूँ| राष्ट्र की समस्याओं और समाधान का भास निज चेतना में है|
मेरी भावनाएँ बहुत आहत हैं| पर समाधान क्या है ???
मेरी भावनाएँ बहुत आहत हैं| पर समाधान क्या है ???
पूरी सृष्टि परमात्मा के संकल्प से बनी है| उस परमात्मा से जुड़कर, उसके संकल्प से जुड़कर ही कोई समाधान निकल सकता हैं|
इसके लिए समर्पण और साधना करनी होगी|
किसी भी विषयपर बिना उस विषय के प्रत्यक्ष अनुभव के, किसी भी तरह के बौद्धिक निर्णय पर पहुँचना -- अहंकार का लक्षण है जो एक अज्ञानता ही है| ऐसा नहीं होना चाहिए|
भगवान भुवन भास्कर उदित होने पर कभी नहीं कहते की मैं आ गया हूँ| उनकी उपस्थिति मात्र से सभी प्राणी उठ जाते हैं| उनकी उपस्थिति में कहीं भी कोई अन्धकार नहीं रहता|
उनकी तरह ही निज जीवन को ज्योतिर्मय बनाना होगा तभी अन्धकार और अज्ञानता को दूर कर समाज और राष्ट्र को आलोकित किया जा सकता है|
सिर्फ बुद्धि से आप किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच सकते| किसी भी मान्यता के पीछे निज अनुभव भी होना चाहिए|
व्यक्तिगत जीवन की व्यस्तताओं के कारण कुछ समय के लिए आध्यात्मिक लेखों की प्रस्तुति पर अस्थायी विराम लगा रहा हूँ| जब भी प्रभु से प्रेरणा मिलेगी पुनश्चः उपस्थित हो जाऊँगा|
आपके जीवन में शुभ ही शुभ हो| आप सब मेरी ही निजात्मा हैं| आप सब के हृदयस्थ प्रभु को प्रणाम|
ॐ नमो नारायण ! जय जय श्री सीताराम !
इसके लिए समर्पण और साधना करनी होगी|
किसी भी विषयपर बिना उस विषय के प्रत्यक्ष अनुभव के, किसी भी तरह के बौद्धिक निर्णय पर पहुँचना -- अहंकार का लक्षण है जो एक अज्ञानता ही है| ऐसा नहीं होना चाहिए|
भगवान भुवन भास्कर उदित होने पर कभी नहीं कहते की मैं आ गया हूँ| उनकी उपस्थिति मात्र से सभी प्राणी उठ जाते हैं| उनकी उपस्थिति में कहीं भी कोई अन्धकार नहीं रहता|
उनकी तरह ही निज जीवन को ज्योतिर्मय बनाना होगा तभी अन्धकार और अज्ञानता को दूर कर समाज और राष्ट्र को आलोकित किया जा सकता है|
सिर्फ बुद्धि से आप किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच सकते| किसी भी मान्यता के पीछे निज अनुभव भी होना चाहिए|
व्यक्तिगत जीवन की व्यस्तताओं के कारण कुछ समय के लिए आध्यात्मिक लेखों की प्रस्तुति पर अस्थायी विराम लगा रहा हूँ| जब भी प्रभु से प्रेरणा मिलेगी पुनश्चः उपस्थित हो जाऊँगा|
आपके जीवन में शुभ ही शुभ हो| आप सब मेरी ही निजात्मा हैं| आप सब के हृदयस्थ प्रभु को प्रणाम|
ॐ नमो नारायण ! जय जय श्री सीताराम !
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