जीवन में हम धर्म और आध्यात्म की जो बड़ी बड़ी बातें और चर्चा करते हैं, वे सब मन को बहलाने का एक मनोरंजन मात्र ही है| उस से कुछ क्षणों के लिए मन में पवित्रता तो आती है पर उस से अधिक कुछ भी नहीं| धर्म की अभिव्यक्ति तो मनोनिग्रह से होती है, मनोरंजन से नहीं| धर्म तो अपनी चेतना में जीया जाता है, वह निज जीवन में निरंतर अभिव्यक्त हो|
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मेरी प्रत्यक्ष साधनाजन्य अनुभूति तो यह है कि निज "जीवन में परमात्मा की निरंतर अभिव्यक्ति ही धर्म है"| यह मेरी साधनाजन्य प्रत्यक्ष अनुभूति है अतः मेरे लिए यही सत्य है|
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किसी भी तरह के मायावी शब्दजाल रूपी घोर अरण्य में मैं अब और खोना नहीं चाहता| "परमात्मा एक अनुभूत सत्य है"| वास्तव में परमात्मा ही सत्य है और परमात्मा ही प्रकाश है| जहाँ परमात्मा की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति नहीं है, वह असत्य, अंधकार और अधर्म है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ नवंबर २०१९
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