Wednesday 8 November 2017

सदा सफल हनुमान ....

अब तक के सारे ज्ञात और अज्ञात इतिहास और साहित्य के सर्वाधिक और सदा सफल यदि कोई पात्र हैं तो वे हैं श्री हनुमान जी जिन्हें किसी भी काम में कभी भी कोई असफलता नहीं मिली| वे सदा सफल रहे| इतना ही नहीं उन्होंने अपने आराध्य देव भगवान श्रीराम के प्रति जितना प्रेम और सेवाभाव अपने निज जीवन में व्यक्त किया उतना अन्य कोई भी नहीं कर पाया|
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इसीलिये वे स्वयं सदा पूज्य हैं| भारत में सर्वाधिक मंदिर भी श्री हनुमान जी के ही हैं| उनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि हम भगवान से सदा निरंतर जुड़े रहें| वे स्वयं भी भगवान ही हैं| उनकी जय हो|
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मनोजवं मारुत तुल्यवेगं जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं |
वातात्मजमं वानर यूथ मुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥
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हनुमान जी के चरित्र में तीन गुण ऐसे हैं जिन का दस लाखवाँ भाग भी यदि किसी को उपलब्ध हो जाए तो वह भगवान श्री राम को पा सकता है| वे गुण हैं ----
(1) पूर्ण प्रेम|
(2) पूर्ण समर्पण|
(3) पूर्ण सेवा|
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हे हनुमान जी, आप हमारे रक्षक हैं| सब तरह के विक्षेप, आवरण व बाधाओं से हमारी रक्षा करो|
हमें अपनी परम प्रेम रूपा पूर्ण भक्ति दो| अन्य किसी भी तरह की कोई कामना और विकार हमारे में ना रहे|
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हमारे राष्ट्र की रक्षा करो| किसी भी तरह के असत्य और अन्धकार का अवशेष हमारे राष्ट्र में ना रहे| यह राष्ट्र पूर्णतः धर्मनिष्ठ और अखंड हो| यहाँ रामराज्य पुनश्चः स्थापित हो|
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हमारा अस्तित्व राममय हो| किसी भी तरह की पृथकता ना हो|
ना मैं रहूँ न कोई मेरापन रहे, सिर्फ तुम रहो और मेरे प्रभु श्री राम रहें|
श्री राम, राम, राम, राम, राम, राम ||
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कहइ रीछपति सुनु हनुमाना, का चुप साधी रहेहु बलवाना|
पवन तनय बल पवन समाना, बुद्धि बिबेक बिज्ञान निधाना |
कवन सो काज कठिन जग माहि, जो नहीं होय तात तुम पाहि ||
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* शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥1॥

भावार्थ:-शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥1॥

* नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥2॥

भावार्थ:-हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए॥2॥

* अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥3॥

भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥3

1 comment:

  1. सदा सफल हनुमान ---
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    अब तक के सारे ज्ञात और अज्ञात इतिहास और साहित्य के सर्वाधिक और सदा सफल यदि कोई पात्र हैं तो वे श्री हनुमान जी हैं, जिन्हें किसी भी काम में कभी भी कोई असफलता नहीं मिली। वे सदा सफल रहे। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने आराध्य देव भगवान श्रीराम के प्रति जितना प्रेम और सेवाभाव अपने निज जीवन में व्यक्त किया उतना आज तक अन्य कोई भी नहीं कर पाया। इसीलिये वे सदा पूज्य हैं। भारत में सर्वाधिक मंदिर भी श्री हनुमान जी के ही हैं।
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    उनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि हम भगवान से सदा निरंतर जुड़े रहें। वे स्वयं भी भगवान ही हैं। उनकी जय हो।
    "अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।
    सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥"
    भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥

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