Saturday 12 February 2022

स्वयं भगवान नारायण यहाँ कूटस्थ में हैं, उनके सिवाय कोई अन्य है ही नहीं ---

 स्वयं भगवान नारायण यहाँ कूटस्थ में हैं, उनके सिवाय कोई अन्य है ही नहीं ---

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कहते हैं कि चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है। ये चित्त की वृत्तियाँ तो अब बेकार हैं। दुःख-तस्कर, चोर-जार-शिखामणि, भगवान श्रीहरिः ने चित्त के साथ-साथ मन, बुद्धि, अहंकार व सारे दुःखों को भी कब चुराया? कुछ पता ही नहीं चला।
मेरे पास तो अब कोई सामान ही नहीं है। जिसका था, उसे वे ले गए। मुझ अकिंचन और निराश्रय की एकमात्र संपत्ति -- स्वयं भगवान नारायण हैं। मुझ निराश्रय की रक्षा करो ---
"हरे मुरारी मधु-कैटभारि गोविंद गोपाल मुकुन्द माधव।
यज्ञेश नारायण कृष्ण विष्णु, निराश्रयं मां जगदीश रक्षः॥"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
१२ फरवरी २०२२

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