Tuesday, 14 September 2021

कूटस्थ सूर्यमण्डल में भगवान पुरुषोत्तम पर निरंतर सदा ध्यान रहे ---


कूटस्थ सूर्यमण्डल में भगवान पुरुषोत्तम पर निरंतर सदा ध्यान रहे ---
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संसार में कहीं भी सुख-शांति-सुरक्षा नहीं है, क्योंकि हमारी इस सृष्टि का निर्माण द्वैत से हुआ है, जिसमें सदा द्वन्द्व रहता है। सुख-शांति-सुरक्षा अद्वैत में है, द्वैत में नहीं। भगवान ने स्वयं को "खं" यानि आकाश-तत्व के रूप में व्यक्त किया है, जहाँ कोई द्वैत नहीं होता। इसलिए जो भगवान के सपीप है, वह "सुखी" है, और जो उन से दूर है वह "दुःखी" है।
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गीता का सर्वप्रथम उपदेश इस जीवन में जिन विद्वान आचार्य से मैंने ग्रहण किया, उन्होने मुझे सब से पहिले क्षर-अक्षर योग का उपदेश दिया था --
"द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते॥१५:१६॥"
अर्थात् इस लोक में क्षर (नश्वर) और अक्षर (अनश्वर) ये दो पुरुष हैं। समस्त भूत क्षर हैं और कूटस्थ अक्षर कहलाता है॥
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यह "कूटस्थ" शब्द मुझे बहुत प्यारा लगा और मैं इसी के अनुसंधान में लग गया और लगा रहा जब तक कूटस्थ-चैतन्य की प्रत्यक्ष अनुभूति नहीं हुई। निषेधात्मक कारणों से अपनी अनुभूतियों को तो नहीं लिख सकता, लेकिन यह तो लिख ही सकता हूँ कि आध्यात्म में अब कोई रहस्य - रहस्य नहीं रहा है। कूटस्थ पुरुषोत्तम स्वयं भगवान वासुदेव हैं, वे ही परमशिव हैं। वे ही हमारे वास्तविक अमूर्त स्वरूप हैं।
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"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥"
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥"
"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते॥"
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ सितंबर २०२१
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कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान और क्रिया-योग साधना -- यही इस अकिंचन का जीवन है। यज्ञ में यजमान की तरह मैं तो एक निमित्त मात्र हूँ। कर्ता और भोक्ता तो भगवान स्वयं हैं। रात्रि को सोने से पूर्व और ब्राह्ममुहूर्त में उठते ही भगवान का ध्यान, और हर समय उनका अनुस्मरण अनिवार्य है।
भगवान कहते है --
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"
अर्थात् - सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो॥
Abandoning all duties, take refuge in Me alone: I will liberate thee from all sins; grieve not.
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ॐ तत्सत् ॥ गुरु ॐ !! जय गुरु !!
१८ सितंबर २०२१
 

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