Monday, 3 January 2022

पुत्र के लिए पिता ही कष्ट उठा सकता है (हृदय की एक घनीभूत पीड़ा) ---

पुत्र के लिए पिता ही कष्ट उठा सकता है (हृदय की एक घनीभूत पीड़ा) ---
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भगवान मेरे हृदय में हैं, मुझसे बिल्कुल भी दूर नहीं हैं। उनमें और मुझमें कोई दूरी नहीं है। उनकी उपस्थिति का पूर्ण आनंद मुझे होना चाहिए, लेकिन मेरे हृदय में एक घनीभूत पीड़ा है। यह पीड़ा मेरी नहीं, बल्कि सारी सृष्टि की है। सारे संसार का दुःख, वेदना और असह्य घनीभूत पीड़ा मुझे अनुभूत हो रही है, उससे मैं बच नहीं सकता। इस पीड़ा को मैं बापस भगवान को लौटा रहा हूँ। यह संसार भगवान की रचना है जिसके अच्छे-बुरे सभी कर्मों के लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं, मैं नहीं।
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अपनी व्यथा भगवान के समक्ष व्यक्त की तो उन्होंने उसका समाधान भी बता दिया है। भगवान कहते हैं कि मुझे अपनी निज चेतना में उनकी इस सृष्टि की अनंतता से भी ऊपर उठना होगा। इसके लिए उन्होंने मुझे सूक्ष्म जगत में उनकी अनंतता यानि दहराकाश से भी परे परमशिव का गहन ध्यान करने को कहा है। भगवान कहते हैं कि जब तक तुम इस अनंतता की सीमा में हो, तब तक तुम्हें सुख के साथ-साथ, दुःख भी भोगना ही पड़ेगा। तुम्हें इस अनंत विराटता से परे जाना होगा जहाँ आनंद ही आनंद है, कोई विषाद नहीं।
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मेरी अंतर्चेतना कह रही है कि इस शरीर की भौतिक मृत्यु से पूर्व ही मुझे निर्विकल्प समाधि की अवस्था को प्राप्त कर उस से भी परे जाना होगा। यहाँ भी मैं भगवान की सहायता पर ही निर्भर हूँ। मुझ अकिंचन में इतनी शक्ति, सामर्थ्य और क्षमता नहीं है। मेरी जगह स्वयं भगवान को ही साधना करनी होगी। हे भगवन्, जब इतनी दूर ले ही आये हो तो अब मुझे अधर में छोड़ नहीं सकते। पार तो आपको ही लगाना पड़ेगा। पुत्र के लिए पिता ही कष्ट उठा सकता है। ॐ तत्सत्॥
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कृपा शंकर
१४ दिसंबर २०२१

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