यज्ज्ञात्वा मत्तो भवति स्तब्धो भवति आत्मारामो भवति .....
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यह नारद भक्ति सूत्र के प्रथम अध्याय का छठा सूत्र है जो एक भक्त की तीन अवस्थाओं के बारे में बताता है| उस परम प्रेम रूपी परमात्मा को जानकर यानि पाकर भक्त प्रेमी पहिले तो मत्त हो जाता है, फिर स्तब्ध हो जाता है और अंत में आत्माराम हो जाता है, यानि आत्मा में रमण करने लगता है|
शाण्डिल्य सूत्रों के अनुसार आत्म-तत्व की ओर ले जाने वाले विषयों में अनुराग ही भक्ति है| भक्त का आत्माराम हो जाना निश्चित है|
.
जो भी अपनी आत्मा में रमण करता है उसके लिये "मैं" शब्द का कोई अस्तित्व नहीं होता|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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यह नारद भक्ति सूत्र के प्रथम अध्याय का छठा सूत्र है जो एक भक्त की तीन अवस्थाओं के बारे में बताता है| उस परम प्रेम रूपी परमात्मा को जानकर यानि पाकर भक्त प्रेमी पहिले तो मत्त हो जाता है, फिर स्तब्ध हो जाता है और अंत में आत्माराम हो जाता है, यानि आत्मा में रमण करने लगता है|
शाण्डिल्य सूत्रों के अनुसार आत्म-तत्व की ओर ले जाने वाले विषयों में अनुराग ही भक्ति है| भक्त का आत्माराम हो जाना निश्चित है|
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जो भी अपनी आत्मा में रमण करता है उसके लिये "मैं" शब्द का कोई अस्तित्व नहीं होता|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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