दरिद्रता एक बहुत बड़ा अभिशाप है, लेकिन अधर्म से पैसा बनाना तो सब से बड़ा "पापों का पाप" है ---
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कमाने से बहुत अधिक आसान है खर्च करना। कम कमाई से घर-गृहस्थी चलाना बहुत ही कठिन है। वर्तमान में बहुत ही खराब समय चल रहा है, अतः कम से कम खर्च में काम चलाना सीखें। कहीं दरिद्रता का महादुःख न देखना पड़े। दरिद्रता -- चाहे वह भौतिक हो या आध्यात्मिक, बहुत ही दुःखद है। आध्यात्मिक दरिद्रता तो भौतिक दरिद्रता से भी अधिक दुःखदायी है।
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किसी दिन अचानक ही सब कुछ छोड़कर हमें इस संसार से चले जाना होगा। कोई हमारे साथ नहीं होगा, और हम भी किसी के साथ नहीं होंगे। साथ सिर्फ परमात्मा का ही शाश्वत है। निरंतर हरिःचिंतन करते रहना चाहिए, पता नहीं कौन सी साँस अंतिम हो।
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मन में यदि काम-वासना यानि यौन-सुख के भाव ही निरंतर आते हैं तो यह खतरे की घंटी है। ऐसी स्थिति में अगला जन्म किसी पशु योनि में होना निश्चित है। अपनी भोजन की आदतें, संगति और वातावरण बदलना पड़ेगा। कुसंग तो किसी भी परिस्थिति में नहीं होना चाहिए। हमारा अगला जन्म कहाँ, किस परिस्थिति में होगा, इसकी कोई सुनिश्चितता नहीं है। अंत समय में जैसी मति होगी, वैसी ही गति होगी। कर्मफलों का सिद्धान्त भी सत्य है, पुनर्जन्म भी सत्य है, और आत्मा की शाश्वतता भी सत्य है। यमदूत किसी को क्षमा नहीं करते। भगवान का अनुग्रह ही मुक्त कर सकता है।
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जो प्रभुप्रेम में गहरी डुबकी लगाएगा उसी को मोती मिलेंगे। अंततः वह स्वयं ही प्रभु के साथ एक हो जाएगा। डूबेगा, खो जाएगा, लौटकर खबर भी न दे सकेगा नमक के पुतले की तरह।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
१८ अप्रेल २०२२
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