Saturday, 23 April 2022

त्रिगुणातीत होना ही मुक्ति है ---

त्रिगुणातीत होना ही मुक्ति है ---
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राम-राज्य तभी स्थापित हो सकता है जब रावण का संहार हो चुका हो। लेकिन समस्या तो यह है कि महिषासुर, हिरण्यकशिपु, रावण और कंस आदि ये सब अमर हैं। ये कभी मरते ही नहीं हैं। मरने का नाटक करते हैं, और घूम-फिर कर बापस लौट आते हैं, और यह सारी सृष्टि इन्हीं से चल रही है। इनके बिना सृष्टि नहीं चल सकती। सारी सृष्टि तीन गुणों से ही चल रही है।
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें त्रिगुणातीत होने को कहते हैं। यह त्रिगुणातीत होना ही मुक्ति है। ऐसी जीवनमुक्त आत्माओं के लोक अलग ही होते हैं। पृथ्वी पर बड़े सौभाग्य से ऐसे महात्माओं के दर्शन होते हैं। इस सृष्टि में कुछ भी निःशुल्क नहीं है। हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है। आध्यात्म में भगवान की प्राप्ति भी तभी होती है जब हम उन्हें अपना पूर्ण प्रेम (Total and unconditional love) बिना किसी शर्त के देते हैं।
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सबसे अच्छा तो यही है कि हम अपना सब कुछ भगवान को अर्पित कर दें। कुछ भी अपने पास बचा कर न रखें। हमारे पास अपना है ही क्या? सब कुछ तो भगवान का है। सिर्फ प्रेम ही हमारा अपना है जिसे भगवान मांगते हैं। अब आगे आप समझदार हैं। अपने विवेक के प्रकाश में जो भी करना चाहते हैं, वह करें।
मंगलमय शुभ कामनाएँ और नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०२२
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राम-राज्य तभी स्थापित हो सकता है जब रावण का संहार हो चुका हो। लेकिन समस्या तो यह है कि महिषासुर, हिरण्यकशिपु, रावण और कंस आदि ये सब अमर हैं। ये कभी मरते ही नहीं हैं। मरने का नाटक करते हैं, और घूम-फिर कर बापस लौट आते हैं, और यह सारी सृष्टि इन्हीं से चल रही है। इनके बिना सृष्टि नहीं चल सकती। सारी सृष्टि तीन गुणों से ही चल रही है।
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें त्रिगुणातीत होने को कहते हैं। यह त्रिगुणातीत होना ही मुक्ति है। ऐसी जीवनमुक्त आत्माओं के लोक अलग ही होते हैं। पृथ्वी पर बड़े सौभाग्य से ऐसे महात्माओं के दर्शन होते हैं। इस सृष्टि में कुछ भी निःशुल्क नहीं है। हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है। आध्यात्म में भगवान की प्राप्ति भी तभी होती है जब हम उन्हें अपना पूर्ण प्रेम (Total and unconditional love) बिना किसी शर्त के देते हैं।
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सबसे अच्छा तो यही है कि हम अपना सब कुछ भगवान को अर्पित कर दें। कुछ भी अपने पास बचा कर न रखें। हमारे पास अपना है ही क्या? सब कुछ तो भगवान का है। सिर्फ प्रेम ही हमारा अपना है जिसे भगवान मांगते हैं। अब आगे आप समझदार हैं। अपने विवेक के प्रकाश में जो भी करना चाहते हैं, वह करें।
मंगलमय शुभ कामनाएँ और नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०२२

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