उपासना की गहनता और दीर्घता दोनों को ही बढ़ाना पड़ेगा ---
.
ईश्वर के साम्राज्य में कई बार हमें कुछ घटनाओं का आभास सा हो जाता है, लेकिन स्पष्टता नहीं होती। वह आभास भी बहुत अधिक आकर्षक और आनंदमय होता है। तब पता चलता है कि जहाँ हम खड़े हैं, वह तो कुछ भी नहीं है, असली चीज तो बहुत आगे है। अतः पीछे मुड़कर मत देखो, आगे बढ़ते रहो। मनुष्य को भटकाने वाली दो ही चीजें है -- उसका लोभ और उसका अहंकार। इनको सकारात्मक दिशा में मोड़ो तो इनसे भी कोई अहित नहीं होगा।
यह बात में अपने अनुभव से कह रहा हूँ कि सूक्ष्म जगत में अनेक महान आत्माएँ हैं जो हमारा हित चाहती हैं और निरंतर हमारा मार्गदर्शन करती रहती हैं। हमें और भी अधिक समय देना होगा, और और भी अधिक गहराई में जाना पड़ेगा।
.
इस समय सबसे बड़ा आकर्षण तो पुराण-पुरुष भगवान श्रीकृष्ण का है। जब तक उनका प्रत्यक्ष साक्षात्कार नहीं होता तब तक कहीं कोई विश्राम नहीं है। यही रामकाज है।
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥११:३८॥" (भगवद्गीता)
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥११:३९॥"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥११:४०॥"
.
मेरी बात यदि आपको बुरी लगी हो, तो कोई बाध्यता नहीं है इन शब्दों को पढ़ने की। लेकिन मैं चुनौती देकर यह बात कहता हूँ कि यदि आपने इन शब्दों को भूल से भी पढ़ लिया है तो ये आपको चैन से नहीं बैठने देंगे। परमात्मा के प्रति प्रेम आपके हृदय में जाग उठा है, जो आपको भगवत्-प्राप्ति के लिए बेचैन कर देगा। आगे का कार्य तो स्वयं भगवान का है, जिन्होने मुझे निमित्त बनाकर गीता के ये शब्द यहाँ मुझसे लिखवाये हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
२२ अप्रेल २०२२
No comments:
Post a Comment