Thursday 7 May 2020

"आत्माराम" सब कर्तव्यों से परे है .....

"आत्माराम" सब कर्तव्यों से परे है, उसका संसार में कोई कर्तव्य नहीं है ---
गीता में भगवान कहते हैं .....
"यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः | आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते ||१३:१७||"
"नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन | न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः||३:१८||"
अर्थात् जो मनुष्य आत्मा में ही रमने वाला आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही सन्तुष्ट हो उसके लिये कोई कर्तव्य नहीं रहता||
इस जगत् में उस पुरुष का कृत और अकृत से कोई प्रयोजन नहीं है और न वह किसी वस्तु के लिये भूतमात्र पर आश्रित होता है||
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ऐसा व्यक्ति जीवनमुक्त होता है| उसमें कोई कर्ताभाव या कोई कामना नहीं होती| आत्मवेत्ता के लिये कोई कर्तव्य नही बचता, वह सब कर्मों से परे है| 'नारद भक्ति सूत्र' के प्रथम अध्याय का छठा सूत्र भक्त की तीन अवस्थाओं के बारे में बताता है ....
"यज्ज्ञात्वा मत्तो भवति स्तब्धो भवति आत्मारामो भवति|"
यानि उस परम प्रेम रूपी परमात्मा को जानकर यानि पाकर भक्त प्रेमी पहिले तो मत्त हो जाता है, फिर स्तब्ध हो जाता है और अंत में आत्माराम हो जाता है, यानि आत्मा में रमण करने लगता है|
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सबसे अच्छी गति आत्माराम की है| हम आत्माराम बनें, यानि आत्मा में ही रमण करें| यही जीवनमुक्त की स्थिति है| यह बात कहने में बड़ी सरल है पर इसकी सिद्धि में कई जन्म लग जाते हैं| अनेक जन्मों के अच्छे कर्मों व तपस्या के पश्चात हरिःकृपा से व्यक्ति को आत्म-तत्व का बोध होता है, तब वह आत्माराम हो पाता है| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अप्रेल २०२०

1 comment:

  1. प्रकृति अपना कार्य करेगी, सभी सज्जनों व दुर्जनों को अपने-अपने कर्मों का फल निश्चित रूप से मिलेगा| हम अपना स्वधर्म निभाएँ और अधर्म का प्रतिकार करें| जिस से अभ्युदय (सर्वतोमुखी विकास/समुत्कर्ष) और निःश्रेयस (सब दुःखों से मुक्ति) की सिद्धि हो, वह ही हमारा सत्य सनातन धर्म है| परमात्मा के प्रति परमप्रेम जागृत कर उन की निज जीवन में अभिव्यक्ति हमारा स्वाभाविक धर्म है| इस पर अडिग रहें| भगवान हमारे साथ हैं, हम अपनी रक्षा करेंगे तो वे भी हमारी रक्षा करेंगे|
    "यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः| तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम||
    ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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