Thursday 7 May 2020

जन्नत से फालतू और घटिया दूसरी कोई जगह है ही नहीं ....

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है (- मिर्ज़ा ग़ालिब)
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जन्नत से फालतू और घटिया दूसरी कोई जगह है ही नहीं| यह छठी शताब्दी की एक अरब फंटाशी है, उस से अधिक कुछ भी नहीं| यह अत्यधिक कामुक और हिंसक लोगों की मनोविकृत झूठी सोच है| वहाँ कुछ भी नहीं मिलता| वहाँ जाकर स्त्री और पुरुष दोनों ही अनंत काल के लिए रोबोट की तरह एक नॉन-स्टॉप २४ घंटे सेक्स करने की मशीन बन जाते हैं| इस का एक चक्र बत्तीस वर्ष में पूरा होता है| फिर दूसरा चक्र शुरू हो जाता है| वह मेकेनिकल सेक्स चौबीस घंटे नॉन-स्टॉप चलता रहता है| वहाँ न तो कुछ खाने को भोजन मिलता है और न पीने को पानी| साँस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती| सिंगल माल्ट स्कॉच व्हिस्की की तरह की किसी उम्दा शराब की नदियाँ वहाँ बहती रहती हैं| पर वह प्राणी उस शराब को भी तरस जाता है क्योंकि चौबीस घंटे के नॉन स्टॉप मेकेनिकल सेक्स से ही मुक्ति नहीं मिलती| दम घुट जाता है|
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कोई ऊँचा विचार या आध्यात्मिक उपलब्धि वहाँ है ही नहीं| कोई वहाँ से मुक्त होकर निकलना चाहे तो निकल भी नहीं सकता, पर अपने सौ साथियों को वहाँ बुला सकता है| यह भी एक तरह की कैद है| कोई स्वतन्त्रता नहीं है, बस एक मशीन बन जाओ और मशीन चलती रहे| एक सेकंड के लिए भी आराम नहीं मिलता|
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वास्तव में जो लोग इस जन्नत की कामना से पूरे जीवन दूसरों का गला काटते रहते हैं या दूसरों को आतंकित करते रहते हैं, से सब अति कष्टमय पिशाच या प्रेत योनी मे जाते हैं और कहीं लटके हुए इस जन्नत का स्वप्न देखते रहते हैं| फिर बार-बार कहीं एक निरीह पशु बनते हैं जिन्हें हिंसक प्राणी अपना शिकार बना कर तड़पा तड़पा कर जिंदा ही खाते रहते हैं|
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यह जन्नत और जहन्नुम एक कल्पना मात्र हैं, जिनका कोई अस्तित्व नहीं है| इस जन्नत की कामना ने इस धरा पर विनाश ही विनाश किया है, कोई अच्छा काम नहीं किया है|
जो और कुछ हो तेरी दीद के सिवा मंज़ूर
तो मुझ पे ख़्वाहिश-ए-जन्नत हराम हो जाए (- हसरत मोहानी)
हमें पीने से मतलब है जगह की क़ैद क्या 'बेख़ुद'
उसी का नाम जन्नत रख दिया बोतल जहाँ रख दी (- बेख़ुद देहलवी)
फिर न आया ख़याल जन्नत का
जब तेरे घर का रास्ता देखा (- सुदर्शन फ़ाख़िर)
उनकी गली नहीं है न उनका हरीम है
जन्नत भी मेरे वास्ते जन्नत नहीं रही (- नादिर शाहजहाँ पुरी)
ख़्वाब हाय दिल नशीं का इक जहाँ आबाद हो
तकिया जन्नत भी उठा लाए अगर इरशाद हो (- मुजतबा हुसैन)
अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
कूचा-ए-यार में चल देख ले जन्नत मेरी (- फ़ानी बदायुनी)
हुआ है चार सज्दों पर ये दावा ज़ाहिदों तुमको
ख़ुदा ने क्या तुम्हारे हाथ जन्नत बेच डाली है (- दाग़ देहलवी)
जन्नत से जी लरज़ने लगा जब से ये सुना
अहल-ए-जहाँ वहाँ भी मिलेंगे यहाँ के बाद (- अज्ञात)
मयख़ाने में मज़ार हमारा अगर बना
दुनिया यही कहेगी कि जन्नत में घर बना (- रियाज़ ख़ैराबादी)
इसी दुनिया में दिखा दें तुम्हें जन्नत की बहार
शैख़ जी तुम भी ज़रा कू-ए-बुताँ तक आओ (- अली सरदार जाफ़री)
गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिद
यहीं कहीं तेरी जन्नत भी पाई जाती है (- जिगर मुरादाबादी)
हूरों से न होगी ये मुदारात किसी की
याद आएगी जन्नत में मुलाक़ात किसी की (- बेख़ुद देहलवी)
रौशनी वालों ने दोज़ख़ में बुलाया है मुझे
मेरी जन्नत के अँधेरों मेरा दामन पकड़ो (- अख़्तर जावेद)
गली में उस की न फिर आते हम तो क्या करते
तबीअत अपनी न जन्नत के दरमियान लगी (- मोमिन ख़ाँ मोमिन)
जिस में लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई (- दाग़ देहलवी)

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