निराशा से मुक्ति ........
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यह स्वाभाविक है कि हमारी कुछ आकांक्षाएँ, लक्ष्य और अपेक्षाएँ होती हैं जिनकी पूर्ती ना होने से घोर निराशा होती है| कुछ लोग इससे अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर लेते हैं और कुछ लोग दूसरों को आत्महत्या के लिए बाध्य कर देते हैं| इस निराशा से अनेक अपराध भी जन्म लेते हैं|
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पहले भारत में यह बीमारी नहीं थी| पर आजकल कुछ अधिक ही है| दूषित राजनीती भी इसके कारणों में से एक है|
भारत में गरीब किसान, असंगठित क्षेत्र के श्रमिक, और गरीब व्यापारी अधिक उधार में डूब जाने पर आत्महत्या कर लेते हैं| गरीब किसानों के प्रति तो कुछ हमदर्दी राजनीतिक लोगों में है पर गरीब व्यापारी या असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए बिलकुल भी नहीं है|
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हर व्यक्ति साधू संत या आध्यात्मिक नहीं हो सकता| कहने को तो मैं कह सकता हूँ कि पूरा ब्रह्मांड मेरा है, बैंकों में पड़ा सारा धन मेरा है| पर मेरा क्या है यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ|
प्रश्न यह है कि निराशा से मुक्ति कैसे पाई जाय ?
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मैं जहाँ तक सोचता हूँ इसके लिए अभ्यास द्वारा पूरे जीवन की चिंतन धारा ही बदलनी होगी| अपने विचार भी सकारात्मक बनाने होंगे और अपने बच्चों की सोच भी सुधारनी होगी| सर्वप्रथम तो यह बात मन में बैठानी होगी कि अपेक्षाएँ ही सब दुःखों की जननी हैं| यह संसार हमें सुख और आनंद का प्रलोभन देता है, पर मिलती यहाँ सिर्फ निराशा ही है| हम किसी भी भौतिक वस्तु के शाश्वत स्वामी नहीं हो सकते| पर अपेक्षा नहीं होगी तो मनुष्य कुछ काम भी नहीं करेगा|
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निराशा का जन्म आत्म-विश्वास की कमी से होता है| अपरिग्रह की अवधारणा का लुप्त होना और ईश्वर में आस्था का न होना भी निराशा का एक बड़ा कारण है| वर्षों पहिले मैं सोचा करता था कि सिर्फ गरीब लोग ही निराशावश आत्मह्त्या करते हैं| पर सबसे अधिक आत्महत्या तो धनाढ्य लोग करते हैं| निराशा के कारण सबसे अधिक आत्महत्या जापान और अमेरिका में होती हैं| व्यापर में थोड़ा सा घाटा लगा या अपेक्षित लाभ नहीं हुआ तो कर ली आत्महत्या| अमेरिका के एक गायक जिसे लोग सर्वाधिक सफल अमेरिकन मानते थे, ने अधिक पैसे के नशे में आत्महत्या कर ली| उसे अरबों रुपया कमाकर भी सुख शांति नहीं मिली|
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समस्त निराशाओं का मूल कारण हमारी परमात्मा से भिन्नता है| जीवन में मनुष्य चाहता है ..... सुख, शांति और सुरक्षा|
ये हमें भगवान में आस्था लाकर और अपने कर्मफल भगवान को समर्पित कर के ही मिल सकती हैं|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
April 20, 2015
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यह स्वाभाविक है कि हमारी कुछ आकांक्षाएँ, लक्ष्य और अपेक्षाएँ होती हैं जिनकी पूर्ती ना होने से घोर निराशा होती है| कुछ लोग इससे अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर लेते हैं और कुछ लोग दूसरों को आत्महत्या के लिए बाध्य कर देते हैं| इस निराशा से अनेक अपराध भी जन्म लेते हैं|
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पहले भारत में यह बीमारी नहीं थी| पर आजकल कुछ अधिक ही है| दूषित राजनीती भी इसके कारणों में से एक है|
भारत में गरीब किसान, असंगठित क्षेत्र के श्रमिक, और गरीब व्यापारी अधिक उधार में डूब जाने पर आत्महत्या कर लेते हैं| गरीब किसानों के प्रति तो कुछ हमदर्दी राजनीतिक लोगों में है पर गरीब व्यापारी या असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए बिलकुल भी नहीं है|
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हर व्यक्ति साधू संत या आध्यात्मिक नहीं हो सकता| कहने को तो मैं कह सकता हूँ कि पूरा ब्रह्मांड मेरा है, बैंकों में पड़ा सारा धन मेरा है| पर मेरा क्या है यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ|
प्रश्न यह है कि निराशा से मुक्ति कैसे पाई जाय ?
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मैं जहाँ तक सोचता हूँ इसके लिए अभ्यास द्वारा पूरे जीवन की चिंतन धारा ही बदलनी होगी| अपने विचार भी सकारात्मक बनाने होंगे और अपने बच्चों की सोच भी सुधारनी होगी| सर्वप्रथम तो यह बात मन में बैठानी होगी कि अपेक्षाएँ ही सब दुःखों की जननी हैं| यह संसार हमें सुख और आनंद का प्रलोभन देता है, पर मिलती यहाँ सिर्फ निराशा ही है| हम किसी भी भौतिक वस्तु के शाश्वत स्वामी नहीं हो सकते| पर अपेक्षा नहीं होगी तो मनुष्य कुछ काम भी नहीं करेगा|
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निराशा का जन्म आत्म-विश्वास की कमी से होता है| अपरिग्रह की अवधारणा का लुप्त होना और ईश्वर में आस्था का न होना भी निराशा का एक बड़ा कारण है| वर्षों पहिले मैं सोचा करता था कि सिर्फ गरीब लोग ही निराशावश आत्मह्त्या करते हैं| पर सबसे अधिक आत्महत्या तो धनाढ्य लोग करते हैं| निराशा के कारण सबसे अधिक आत्महत्या जापान और अमेरिका में होती हैं| व्यापर में थोड़ा सा घाटा लगा या अपेक्षित लाभ नहीं हुआ तो कर ली आत्महत्या| अमेरिका के एक गायक जिसे लोग सर्वाधिक सफल अमेरिकन मानते थे, ने अधिक पैसे के नशे में आत्महत्या कर ली| उसे अरबों रुपया कमाकर भी सुख शांति नहीं मिली|
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समस्त निराशाओं का मूल कारण हमारी परमात्मा से भिन्नता है| जीवन में मनुष्य चाहता है ..... सुख, शांति और सुरक्षा|
ये हमें भगवान में आस्था लाकर और अपने कर्मफल भगवान को समर्पित कर के ही मिल सकती हैं|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
April 20, 2015
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