Thursday, 20 April 2017

सारे प्रश्न हमारे सीमित और अशांत मन की उपज हैं .....

सारे प्रश्न हमारे सीमित और अशांत मन की उपज हैं .....
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हमारे बाहर कोई उत्तर नहीं है| सारे उत्तर हमारे भीतर ही हैं|
सारे प्रश्न हमारे सीमित और अशांत मन की उपज हैं| शांत मन में सारे प्रश्न तिरोहित हो जाते हैं|
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मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ है| मेरे में एक अति तीब्र जिज्ञासा वृति थी सत्य को जानने की| जीवन में ऐसे कई मनीषी महात्मा मिले जिनकी उपस्थिति मात्र से मेरा अशांत मन शांत हो जाता, और मन में भरे हुए बहुत सारे प्रश्न उस समय बिलकुल विस्मृत हो जाते| उनके पास से दूर जाते ही वे सब प्रश्न फिर याद आ जाते और मन भी अशांत हो जाता| मैं फिर दुबारा लिखकर बहुत सारे प्रश्न ले जाता कि अब की बार नहीं छोड़ना है, ये सारे प्रश्न पूछने ही हैं| पर उनके पास जाते ही भूल जाता कि कुछ पूछना भी है| मुझे एक ऐसे भी महात्मा मिले हैं जिन्होंने बिना पूछे ही मेरे मन में उत्पन्न हुए सारे प्रश्नों के क्रमशः उत्तर दे दिए|
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अब कोई प्रश्न ही नहीं बचा है| कम से कम आध्यात्मिक क्षेत्र का तो कोई भी प्रश्न, कोई जिज्ञासा या शंका जब होती है तो उसका समाधान भी भीतर से ही तुरंत हो जाता है| आध्यात्मिक क्षेत्र में तो किसी से कुछ पूछने की कोई बात ही नहीं रही है|
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अंततः मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि सारे प्रश्न हमारे सीमित और अशांत मन की उपज हैं| शांत मन में सारे प्रश्न तिरोहित हो जाते हैं| जब मन शांत होता है तो कोई प्रश्न ही उत्पन्न नही होता|
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ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय |

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