कुछ गूढ बातें ऐसी भी होती हैं जिनके लिए वाणी में कोई शब्द नहीं होते। वे शब्दों में व्यक्त नहीं हो सकतीं। वे केवल मनोभूमि में ही दिखाई देती हैं, और वहीं पर उनमें वैचारिक मंथन होता है। क्या उन्हें ही परा और पश्यंती कहते हैं ?
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गूढ़ से गूढ़ आध्यात्मिक सत्य शब्दों में व्यक्त नहीं हो सकते। वे भावों में ही अनुभूत होते हैं। वे अनुभूतियाँ ही वास्तविक आनंद हैं। अब उनसे और नीचे उतरना संभव नहीं है।
धन्य है वेदों के रचेता, जिन्होंने उनके दर्शन भी किये, सुना भी, और हमारे ज्ञान लाभ के लिए श्रुतियों में शब्द रूप में व्यक्त भी कर गये।
हरिः ॐ तत्सत् !!
२० दिसंबर २०२४
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