Tuesday, 10 December 2024

भगवत्-प्राप्ति" (आत्म-साक्षात्कार) ही हमारा एकमात्र शाश्वत स्वधर्म है ---

"भगवत्-प्राप्ति" (आत्म-साक्षात्कार) ही हमारा एकमात्र शाश्वत स्वधर्म है।"

इसके अतिरिक्त अन्य सब परधर्म हैं।"
गीता में भगवान हमें स्वधर्म में ही स्थित रहने, को कहते हैं ---
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥२:४०॥"
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३:३५॥"
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हमारे सब दुःखों, कष्टों, और पीड़ाओं का एकमात्र कारण स्वधर्म से विमुखता है। अन्य कोई कारण नहीं है। .
सत्य को समझने/जानने की जिज्ञासा और उसे निज जीवन में व्यक्त करने की अभीप्सा शाश्वत है। सत्य ही परमात्मा है। भगवान सत्य-नारायण हैं। हम उन के साथ एक हों, यही हमारा धर्म है। यह धर्म ही इस सृष्टि को चला रहा है। यह ही सनातन-धर्म है। भारत की विराट एकता का आधार भी यह धर्म है।
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इस धर्म की पुनः प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण हो, इसके लिए हमें ईश्वर की सूक्ष्म दैवीय शक्तियों को साधना द्वारा जागृत कर उनकी सहायता लेनी ही होगी। भगवान हमारी सहायता करेंगे। हम अपनी चेतना को परमात्मा की अनंत चेतना से जोड़ कर उनके साथ एक होकर ही समष्टि की सर्वश्रेष्ठ सेवा कर सकेंगे। तभी असत्य का अंधकार दूर होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० दिसंबर २०२३

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