Wednesday 31 August 2022

निर्विकल्प समाधि ---

 निर्विकल्प समाधि ---

.
एक अनुभूति है जो हरिःकृपा से ही होती है। बिना इसको अनुभूत किए इसके बारे में सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं। यह कोई पुरुषार्थ से प्राप्त होने वाली उपलब्धि नहीं, बल्कि हरिःकृपा से ही प्राप्त होने वाली एक अनुभूति है। यह अनुभूति "अनन्य भक्ति" की ही अगली अवस्था है, जहाँ स्वयं का कोई पृथक अस्तित्व नहीं रहता। विकल्प -- अनेकता में होता है, एकता में नहीं। परमात्मा में पूर्ण समर्पण को ही -- निर्विकल्प कहते हैं। निर्विकल्प में कोई अन्य नहीं होता। समभाव से परमात्मा में पूर्ण रूप से समर्पित अधिष्ठान -- निर्विकल्प समाधि है। पृथकता के बोध की समाप्ति का होना -- निर्विकल्प में प्रतिष्ठित होना है। निर्विकल्प समाधि में ही हम कह सकते है -- "शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि", क्योंकि तब कल्याणकारी ब्रह्म से अन्य कोई नहीं है। परमात्मा की अनंतता, व उससे भी परे की अनुभूति, और पूर्ण समर्पण -- निर्विकल्प समाधि है। इस देह का त्याग निर्विकल्प समाधि में सुषुम्ना मार्ग से ब्रह्मरंध्र के द्वार से, परमात्मा की अनंतता से भी परे जाकर परमशिव के चरणों में हो। अब इस संसार से मन भर गया है, यहाँ और रहने की इच्छा नहीं है। जितने दिन भी भगवती इस संसार में रखेगी, भगवद्भक्ति का अवलंबन ही एकमात्र आधार है।
२८ अगस्त २०२२

1 comment:

  1. विकल्प -- अनेकता में होता है, एकता में नहीं। परमात्मा में पूर्ण समर्पण को ही -- निर्विकल्प कहते हैं। निर्विकल्प में कोई अन्य नहीं होता। सम भाव से परमात्मा में पूर्ण रूप से समर्पित अधिष्ठान -- निर्विकल्प समाधि है। पृथकता के बोध की समाप्ति का होना -- निर्विकल्प में प्रतिष्ठित होना है।
    निर्विकल्प समाधि में ही हम कह सकते है -- "शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि", क्योंकि तब कल्याणकारी ब्रह्म से अन्य कोई नहीं है।

    ReplyDelete