मैं सदा परमात्मा से परमप्रेम की बातें करता हूँ, क्योंकि यह मेरा स्वभाव है। मैं इसे छोड़ नहीं सकता, चाहे मुझे यह शरीर ही छोड़ना पड़े। मैं ऐसे किसी व्यक्ति का मुँह भी नहीं देखना चाहता, जिसके हृदय में परमात्मा के लिए प्रेम नहीं है। किसी को मेरा यह स्वभाव पसंद नहीं है तो वे मुझे छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं, मुझे उनकी कोई आवश्यकता नहीं है।
.
परमात्मा से मैं कुछ माँगता नहीं हूँ, क्योंकि जो कुछ भी उनका है, उस पर मेरा जन्मसिद्ध पूर्ण अधिकार है। उनकी पूर्णता और अनंत सर्वव्यापकता मेरी भी पूर्णता और अनंत सर्वव्यापकता है। जो वे हैं, वही मैं हूँ। जैसे एक पिता पर पुत्र का पूर्ण अधिकार होता है, वैसे ही परमात्मा पर मेरा पूर्ण अधिकार है। मेरे हृदय में कभी कुटिलता और अहंकार का कण मात्र भी नहीं आ सकता।
.
इस संसार में मैं कोई परभक्षी या किसी पर भार नहीं हूँ, किसी से कुछ नहीं लेता। अपनी ही स्व-अर्जित अति अति अल्प पूंजी से ही कैसे भी अपना और अपने परिवार का निर्वाह करता हूँ। मैं अधर्म का कोई कार्य नहीं करता। मैं यह भी नहीं चाहता कि कोई मुझे याद करे। किसी को याद ही करना है तो परमात्मा को याद करें, मुझे नहीं।
.
यह सृष्टि परमात्मा की है। वे अपनी सृष्टि को कैसे भी चलायें, उनकी इच्छा। प्रकृति अपने नियमानुसार चल रही है, जिन्हें न जानना मेरी अज्ञानता है। जहाँ भी, जैसी भी परिस्थिति में परमात्मा ने मुझे रखा है, उस से मैं प्रसन्न हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ अगस्त २०२२
No comments:
Post a Comment