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शिवनेत्र होने का अर्थ है कि दृष्टिपथ भ्रूमध्य की ओर स्थिर रहे। सर्वव्यापी ज्योतिर्मय शिव का ध्यान कीजिये। यदि आप नए साधक हैं तो ब्रह्मज्योति के दर्शन में समय लगेगा; भ्रूमध्य में एक ब्रह्मज्योति की परिकल्पना कीजिये। उसके प्रकाश को सारे ब्रह्मांड में, सारी सृष्टि में फैला दीजिये। वह प्रकाश आप स्वयं हैं। जितनी भी आकाश-गंगाएँ, उनके नक्षत्र, ग्रह-उपग्रह आदि हैं, व जो कुछ भी सृष्ट हुआ है, वह आप स्वयं हैं। आप यह देह नहीं हैं। इस देह भाव से आपको मुक्त होना ही पड़ेगा। आपकी देह से सारा कार्य भगवान स्वयं संपादित कर रहे हैं। वे ही आपके पैरों से चल रहे हैं, वे ही आपकी आँखों से देख रहे हैं, वे ही आपके हृदय में धडक रहे हैं, और वे ही आपकी नासिकाओं से साँस ले रहे हैं।
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आप जहाँ भी जाते हैं, वहाँ भगवान स्वयं जाते हैं, जहाँ भी आपके पैर पड़ते हैं, वह भूमि पवित्र हो जाती है। जिस पर आपकी दृष्टि पड़ती है, वह निहाल हो जाता है। "शिवो भूत्वा शिवं यजेत" अर्थात शिव बनकर ही शिव की आराधना करें। आप स्वयं ज्योतिर्मय परमब्रह्म परमशिव हैं। सदा इसी भाव में रहो। जब भी समय मिले खूब अजपाजप कीजिये, ओंकार-श्रवण कीजिये, श्रीमद्भगवद्गीता और उपनिषदों का स्वाध्याय कीजिये। यदि आप रामभक्त हैं तो राममय होकर रहिए, कृष्णभक्त हैं तो कृष्णमय होकर रहिए। यदि आप द्विज हैं और गायत्री साधना करते हैं, तो गायत्री मंत्र के सविता देव की भर्गः ज्योति का खूब ध्यान कीजिये। लेकिन रहो सदा अपने शिवभाव में ही।
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यह ज्योतिर्मय शिवभाव ही आपके माध्यम से एक ब्रह्मतेज का प्राकट्य करेगा, जिससे समष्टि का कल्याण होगा। चारों ओर छाया तमस इसी ब्रहमतेज से दूर होगा। दीपावली की मंगलमय शुभ कामना और नमन !!



















ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२४ अक्तूबर २०२२
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