भगवती, मुझे असंसारी, निष्कामी, निर्द्वन्द्व और प्रमादरहित बनायें ---
.
यह पूर्ण हृदय से की गई प्रार्थना है -- भगवती मुझे असंसारी, निष्कामी, और प्रमादरहित बनाएँ। ध्यान साधना में सूक्ष्म जगत में तो प्रायः सभी साधक चले जाते हैं। यदि आप अपनी चेतना में प्रेममय होकर सूक्ष्म जगत से भी परे जा सकते हैं तो निश्चित रूप से आपको जगन्माता की अनुभूतियाँ होंगी। वैसे तो वे तीनों शरीरों और सभी तन्मात्राओं से परे विशुद्ध चेतना हैं, लेकिन करुणावश अपने भक्तों को अपना बोध करा ही देती हैं। उनकी अनुभूति शब्दातीत है, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। जगन्माता के सभी रूप एक ही हैं, सिर्फ उनकी अभिव्यक्तियाँ ही अलग अलग हैं।
.
मैं जगन्माता की आराधना एक विशेष उद्देश्य के लिए करता हूँ। कभी कभी पाता हूँ कि मेरे अवचेतन मन में अभी भी तमोगुण भरा पड़ा है। उसे दूर करना मेरे वश की बात नहीं है। साधना में विक्षेप उसी कारण से आता है। भगवती से प्रार्थना करता हूँ कि उस तमोगुण से ही नहीं, सभी गुणों से मुक्त कर मुझे त्रिगुणातीत अवस्था प्रदान करें, मुझे असंसारी, निष्कामी, निर्द्वन्द्व और प्रमादरहित बनायें।
.
पूर्ण श्रद्धा-विश्वास पूर्वक प्रार्थना करने पर निश्चित रूप से उत्तर मिलता है। मुझे भी उत्तर मिला है। जगन्माता ने अपनी अनुभूतियाँ मुझे भी प्रदान की हैं और आश्वासन भी दिया है। श्रद्धा-विश्वास और सत्यनिष्ठा होगी तो वे जीवात्मा को परमात्मा की प्राप्ति करा देंगी।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ अक्तूबर २०२२
No comments:
Post a Comment