भगवान की आराधना हम चाहे उनके मातृ-रूप की करें या पितृ-रूप की, साधना में सफलता -- भक्ति से ही मिलती है। बिना भक्ति के एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। हर तरह के संकटों से रक्षा भी हमारी भक्ति ही करती है। श्रद्धा और विश्वास का जन्म भी भक्ति से ही होता है, व ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति भी भक्ति से ही होती है।
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अतः बिना किसी संकोच के मैं यह कह सकता हूँ कि भगवान की भक्ति ही हमारी माता है। जगन्माता के सारे रूप भक्ति की ही विभिन्न आयामों में अभिव्यक्तियाँ हैं।
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