Monday, 24 October 2022

मेरा जीवन एक खुली पुस्तक है, न तो मेरा प्रोफाइल लॉक है और न कुछ गोपनीय है ---

 मेरा जीवन एक खुली पुस्तक है, न तो मेरा प्रोफाइल लॉक है और न कुछ गोपनीय है ---

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मैं अपने विचार खुल कर रखता हूँ, किसी को अच्छे लगें तो पढ़ें, नहीं लगें तो गल्प (गप्प) समझ कर उपेक्षा कर दें। मेरी अनुभूतियाँ ही प्रमाण हैं, कोई माने तो ठीक है, न माने तो मुझे ब्लॉक कर दें। यह फेसबुक आदि जो सोशियल मीडिया हैं, वे सब यहूदियों की संपत्ति है। वे उसका उपयोग हमें करने दे रहे हैं यह उनकी महानता है। मैं तो सनातन धर्मानुयायी एक हिन्दू ब्राह्मण हूँ। मुझे मेरे धर्म और संस्कृति पर अभिमान है। इब्राहिमी मज़हबों (Abrahamic Religions) और मार्क्सवाद में मेरी कोई आस्था नहीं है, हालांकि इन का मुझे पर्याप्त अध्ययन है।
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मेरी मित्रता दंडी सन्यासियों से भी है, और वैष्णवाचार्यों से भी। अनेक विद्वान भी मेरे मित्र हैं। भगवान परमशिव का मैं ध्यान करता हूँ, भगवान श्रीराधाकृष्ण मेरे प्राण हैं। भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण मेरे परम आदर्श और आराध्य हैं। श्रीमद्भगवद्गीता और वेदान्त दर्शन का मुझे कामचलाऊ अनुभूतिजन्य ज्ञान है, जिस पर किसी भी तरह का कोई संशय मुझे नहीं है। मैं इस आलेख में दो-तीन बातें कहना चाहता हूँ --
(१) कोई चाहे या न चाहे, उसे भगवान की प्राप्ति के मार्ग पर आना ही पड़ेगा, इस जन्म में या अगले कुछ जन्मों के पश्चात। प्रकृति अपने नियमों में बड़ी कठोर है, वह बाध्य कर के सब को एक न एक दिन सन्मार्ग पर ले ही आएगी। जितनी शीघ्र आप आ जाएँगे उतना अच्छा है। अन्यथा संसार की विषमताएँ आपको बाध्य कर के इस मार्ग पर ले आयेंगी।
(२) आप अकेले नहीं है। भगवान सदा हमारे साथ हैं। वे एक क्षण के लिए भी हमारे से अलग नहीं होते हैं। हम कष्ट पा रहे हैं इसका कारण हमारा कर्ताभाव यानि अहंकार और लोभ है। भगवान हर समय हमारा मार्गदर्शन करते हैं। श्रद्धा के अभाव में हम उनकी उपेक्षा कर देते हैं। अपनी दिव्य उपस्थिती का आभास वे करा ही देते हैं। एक बार मैं भगवान परमशिव का ध्यान कर रहा था। मेरी चेतना इस शरीर में नहीं थी। एक प्रश्न उठा कि वह कौन है जो ध्यान कर रहा है। उसी समय मुझे अपनी चेतना में आभास हुआ कि सामने भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण शांभवी मुद्रा में स्वयं बैठे हैं, और अपने परमशिव रूप का ध्यान कर रहे हैं। उस समय से मैं तो एक निमित्त मात्र हूँ। एक दिन अनुभूति हुई कि भगवान श्रीराधाकृष्ण ही मेरे प्राण हैं। यह शरीर उन्हीं की कृपा से चैतन्य है। जिस समय भी वे चाहेंगे उसी समय यह शरीर शांत हो जाएगा। भगवती श्रीराधा जी कुंडलिनी महाशक्ति के रूप में सुषुम्ना की उपनाड़ी ब्राह्मी में विचरण कर रही हैं, और कूटस्थ में श्रीकृष्ण को नमन कर के लौट आती हैं। जिस क्षण भी वे श्रीकृष्ण के साथ एक हो जाएंगी, उसी क्षण यह जीवात्मा यानि मैं भी मुक्त हो जाऊँगा। वैसे तो मैं नित्य-मुक्त हूँ। कोई बंधन नहीं है। सारे बंधन जाने-अनजाने में मैनें ही स्वयं पर थोप दिये थे, उन्हीं का फल भुगत रहा हूँ।
(३) भगवान ने ही मुझे यह आभास कराया है कि सारी सृष्टि मेरे साथ एक है। सम्पूर्ण विश्व ही मेरे साथ भगवान की उपासना कर रहा है। मैं सांस लेता हूँ तो सारी सृष्टि मेरे साथ सांस लेती है। मैं भगवान का ध्यान करता हूँ तो सारी सृष्टि भगवान का ध्यान करती है। इस साधना का फल मुझे नहीं, सम्पूर्ण समष्टि को ही मिलेगा। मैं इस देह के लिए नहीं, पूरी समष्टि के लिए जी रहा हूँ। मैं यह शरीर नहीं, परमात्मा की विराट अनंतता और पूर्णता हूँ। स्वयं को यह शरीर समझना ही मेरे सारे कष्टों का कारण है।
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ईश्वर की संपूर्णता में मैं आप सब में उन को नमन करता हूँ। मुझ अकिंचन के पास ईश्वर के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१६ अक्तूबर २०२२

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