हम ज्योतिर्मय ब्रह्म के साथ एक हों ---
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भगवान सब तरह के धर्म-अधर्म, सिद्धान्त और नियमों से परे हैं। उनकी प्रेरणा और कृपा से मैं भी स्वयं को सब तरह की साधनाओं, उपासनाओं, धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य, और कर्तव्यों से मुक्त कर रहा हूँ। वे निरंतर मेरे दृष्टि-पथ में हैं। वे मुझसे पृथक अब नहीं हो सकते। मेरा एकमात्र धर्म -- परमात्मा से परमप्रेम और उनको पूर्ण समर्पण है। यही मेरा स्वधर्म है।
“ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥"
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कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का आलोक ही बाहर के तिमिर का नाश कर सकता है। हम अपने सर्वव्यापी शिवरूप में स्थित हो कर ही समष्टि की वास्तविक सेवा कर सकते हैं। हम सामान्य मनुष्य नहीं, परमात्मा की अमृतमय अभिव्यक्ति हैं। भगवान कहीं आसमान से नहीं उतरने वाले, अपने स्वयं के अन्तर में ही उन्हें जागृत करना होगा। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ अक्टूबर २०२२
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